राहुल गांधी कहते
हैं, ‘सरकार मुझे संसद में
बोलने नहीं दे रही। मैं बोलूँगा तो भूचाल आ जाएगा।’ और अब प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं कि मुझे बोलने नहीं
दिया जाता। उधर पीआरएस के आँकड़ों के अनुसार संसद
के शीत सत्र में लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 19 फीसदी काम हुआ है। लोकसभा में
जो भी काम हुआ उसका एक तिहाई प्रश्नोत्तर के रूप में है। राज्यसभा में प्रश्नोत्तर
हो ही नहीं पाए। लोकसभा ने इस दौरान आयकर से जुड़ा एक संशोधन विधेयक पास किया, जो
केवल 10 मिनट में पास हो गया। यह सत्र 16 दिसंबर तक चलना है। सोमवार और मंगल को
अवकाश हैं। अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं।
संसद के न चलने की वजह केवल विपक्ष नहीं है। इसमें सरकार की भी भूमिका है। संसदीय गरिमा की रक्षा करना दोनों की जिम्मेदारी है। सुनाई पड़ रहा है
कि सरकार और विपक्ष के बीच बचे हुए समय के सदुपयोग पर सहमति बनी है, पर सच यह है कि
काफी कीमती समय बर्बाद हो गया है। एक बौद्धिक तबक़ा कहता है कि
राजनीति में शोर है तो उसे दिखाना और सुनाना भी चाहिए। सड़क पर शोर है तो संसद में
क्यों नहीं?
शोर के सांकेतिक अर्थ महत्वपूर्ण हैं। पर यदि वह पूरे के पूरे सत्र को बहा ले जाए
तो उसका कोई मतलब भी नहीं रह जाता। और वह शोर निरर्थक हो जाता है और संसद भी।