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Thursday, June 17, 2010

उत्तर कोरिया ने भी चौंकाया

इस बार के वर्ल्ड कप में स्पेन की हार अब तक का सबसे बड़ा अपसेट है। पर जिस टीम की ओर ध्यान देना चाहिए वह उत्तर कोरिया है। यह निराली टीम है। अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में न के बराबर खेलती है। इसके पहले 1966 के वर्ल्ड कप मे खेली थी और पुर्तगाल को हराकर हंगामा कर दिया। इस बार ब्राजील से 2-1 से हार गई, पर शान से हारी

दुनिया की नम्बर 1 टीम और 103 नम्बर की टीम के बीच मैच का परिणाम 2-1 रहना अपने आप में रोचक है। उससे ज्यादा रोचक है, स्टेडियम में खेल का माहौल। कोरिया समर्थक दर्शक दो तरह के थे। एक चीन से किराए पर लाए गए फर्जी दर्शक थे। दूसरे थे उत्तरी कोरिया के कम्युनिस्ट शासकों से नाराज़ होकर भागे लोग जो इंग्लैंड या दूसरे देशों में पनाह लेकर रह रहे हैं। इन लोगों को अपने देश से प्यार है. वे मानते हैं कि ङमारा बैर शासकों से है, देशवासियों से नहीं।

उत्तरी कोरिया की सरकार ने अपने देश के लोगों को विश्व कप देखने के लिए नहीं आने दिया। शायद कोई डर होगा। वहाँ खेल का लाइव ब्रॉडकास्ट भी नहीं होता। टीम की तैयारी के लिए साधन भी नहीं हैं। इस लिहाज से इस टीम का ब्राज़ील के खिलाफ प्रदर्शन शानदार ही कहा जाएगा। इस टीम में ज्यादातर खिलाड़ी उत्तर कोरिया में ही रहते हैं। कुछ खिलाड़ी जापान में रहने वाले उत्तर कोरियाई हैं। यहां के कुछ खिलाड़ी विदेशी मैदानों मे भी खेलते हैं।



उत्तर कोरिया के समर्थक चीन से आए

एक सपना जो पूरा हुआ

Sunday, June 13, 2010

वुवुज़ेला पर बहस



विश्व कप में कौन जीतेगा या हारेगा पर कयासबाज़ी पहले से चल रही थी। अब इस बात पर बहस है कि वुवुज़ेला बजाना ठीक है या नहीं। एएफपी  की रपट के मुताबिक ऑनलाइन कम्युनिटी के लिए यह जबर्दस्त मुद्दा है। मज़ा यह है कि इस दौरान वुवुस्टॉप नाम के ईयर प्लग्स की बिक्री भी जोरों पर है। इस रपट में एक ईयर प्लग विक्रेता का ज़िक्र है जिसका कहना है कि उसने 200 ईयर प्लग बेचे। पर अगर उसके पास 300 होते तो वे भी बिक जाते। 


शुक्रवार को दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको के बीच मैच के दौरान कुछ देर के लिए अचानक वुवुज़ेला खामोश हो गए थे। ऐसा तब हुआ जब मैक्सको के मार्केज़ ने दक्षिण अफ्रीका पर बराबरी का गोल दागा। 


फेसबुक और यूट्यूब पर वुवुज़ेला प्रेमी और उसके आलोचक आपस में भिड़ गए हैं। बहस इतनी जोरदार है कि एक वैबसाइट खुल गई है। ईएसपीएन के कमेंटेटर इस पींपी से खासे नाराज़ हैं। आप चाहें तो इस बहस में कूद पड़ें। हो सकता है आप टीवी न देख पाए हों और चाहते हों कि आखिर कैसी आवाज़ है जिसपर हंगामा बरपा है तो यहाँ क्लिक करें और सुनें।और अगर आपके पास वुवुज़ेला है और उसे बजाना सीखना चाहते हैं तो इधर चले आएं। 

Saturday, June 12, 2010

वुवुझेला ?



दक्षिण अफ्रीका में हो रहे विश्व कप का टीवी प्रसारण देखने पर एक खास तरह का शोर सुनाई पड़ता है। लगता है मधुमक्खियाँ भिनभिना रहीं हैं। यह वुवुज़ेला बज रहा है। वुवुज़ेला करीब आधे से एक मीटर तक लम्बा भोंपू है, जिसे दर्शक मौज-मस्ती में बजा रहे हैं। एक वुवुज़ेला पूरी शिद्दत से बजाया जाए तो 131 डैसिबल की आवाज़ करता है। और हजारों एक साथ बजें तो? प्रतियोगिता के पहले रोज़ 90,000 दर्शकों में से 10 प्रतिशत ने भी इसे बजाया होगा तो करीब 10,000 वुवुजेलाओं को तो आपने झेला ही होगा। 


विकिपीडिया से पता लगा वुवुजेला की ईज़ाद मैक्सिको में हुई। वहीं जहाँ मैक्सिकन वेव की ईज़ाद हुई। वहाँ यह टीन का बनता था। इसे ब्राज़ील में भी बजाया जाता है। बाद में यह अल्युमिनियम का बनने लगा। दक्षिण अफ्रीका में इन दिनों प्लास्टिक के वुवुज़ेला बज रहे हैं। वुवुज़ेला से कान को नुकसान होता है। इसकी आवाज़ दरअसल हाथी के चिंघाड़ने जैसी होती है। इससे बहरापन पैदा हो सकता है। कारोबारियों के पास इसका भी इलाज़ है। जितने लोग वुवुज़ेला खरीद रहे हैं, उतने ही ईयर प्लग भी खरीद रहे हैं। बेचने वालों को दक्षिण अफ्रीकी दर्शकों के शौक का पता था, सो उन्होंने पहले से इंतज़ाम करके रखा है। 25 रैंड में एक जोड़ी। तुम्हीं ने दर्द दिया.....

Friday, June 11, 2010

वर्ल्ड कप का जोश


आज के अखबार देखें तो वर्ल्ड कप की खबर और चित्रों से रंगे मिलेंगे। दुनिया का सबसे बड़ा न सही दूसरे नम्बर का खेल मेला है। इससे बड़ी बात यह है कि अफ्रीका में इस स्तर का कोई आयोजन पहली बार हो रहा है। तीसरी बात चाहे अफ्रीकी टीमों से खेलें या दूसरी टीमों से अफ्रीकी मूल के खिलाड़ी इतनी बड़ी संख्या में दिखाई पड़ेगे। ऐसा भी कहा जा रहा है कि इसके बाद अफ्रीका के विकास की गति तेज होगी।

देश में 10 स्टेडियम तैयार हैं। एयरपोर्ट को अपग्रेड किया गया है। दिल्ली मेट्रो के तर्ज पर उससे भी तेज़ गति वाली गौट्रेन का ट्रायल हो गया और वर्ल्ड कप के साथ यह ट्रेन भी शुरू हो जाएगी। 1964 में बुलेट ट्रेन के साथ इसी तरह जापान ने अपनी विकास यात्रा शुरू की थी। क्या यह कहानी जापान जैसी ही है?

जब इस विश्व कप के आयोजन की जिम्मेदारी दक्षिण अफ्रीका को मिली तब माना जा रहा था कि देश के ढाई करोड़ गरीबों को भी इसका लाभ मिलेगा। उनके जीवन में बहार आएगी। इस दौरान करीब 4 अरब डॉलर के खर्च से देश में स्टेडियम और खेलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया गया। उम्मीद थी कि बड़ी तादाद में पर्यटक आएंगे। लोकल कारोबारियों को काम मिलेगा। इससे गरीबों की रोज़ी भी बढ़ेगी। पर लगता है कि विश्व कप पूरा होने के बाद स्टेडियम सफेद हाथी की तरह खड़े रहेंगे। ग्लोबल मंदी की वजह से पर्यटकों की तादाद में कम से कम 25 फीसदी की गिरावट आई है। 

दक्षिण अफ्रीका के जोहानेसबर्ग और केपटाउन जैसे शहरों से हजारों लोगों को हटाकर दूर बसाया गया है। संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि रैकेल रोल्निक ने इस आशय की रिपोर्ट दी है कि लोगों को उजाड़े जाने से मानवाधिकार का व्यापक उल्लंघन हुआ है। 1988 में जब सोल ओलिम्पिक हुए थे तब उस शहर की तकरीबन 15 फीसदी आबादी को उजाड़ा गया था। 2008 के पेइचिंग ओलिम्पिक के दौरान लाखों लोगों के मकान गिराए गए थे। अगर्चे गरीबों को बदले में बेहतर ज़िन्दगी मिलती तो शायद यह सब ठीक था। पर  ऐसा नहीं हुआ। खेल के दौरान लोकल कारोबारियों और रेहड़ी लगाने वालों को कारोबार मिलने की उम्मीद थी, पर खेल आयोजन समिति ने स्टेडियमों के आसपास के इलाके की व्यवसायिक दीर्घाएं मैक्डॉनल्ड और कोका कोला जैसे ऑफीशियल स्पांसरों को दे दी हैं। शहर से 15-20 किलोमीटर दूर गरीबों को बसाया गया है। राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा चाहते हैं कि इस दौरान ये सवाल न उठाए जाएं, क्योंकि इससे देश की बदनामी होगी।

खेल के सहारे होने वाली आर्थिक गतिविधियाँ क्या गरीबों के विकास में मददगार हो सकतीं हैं। इसपर हमें विचार करने की ज़रूरत है। हम भी 2020 के ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करना चाहते हैं। हो सकता है हम ध्यान दें तो खेल भी हों और गरीबों का कुछ फायदा भी हो। खेलों के आयोजन के वास्ते विकासशील देशों में वर्ल्ड क्लास शहर बनाने की होड़ लगेगी। देखना यह कि इन वर्ल्ड क्लास शहरों में गरीबों के लिए किस तरह की जगह होगी। 

दक्षिण अफ्रीका में अब अश्वेत सरकार है, पर वह अपने बंधुओं का कितना ख्याल रखती है इसे भी देखें। सोवेटो शहर के बाहर बने सॉकर सिटी स्टेडियम में 90,000 दर्शकों के बैठने का इंतज़ाम है। पर वीवीआईपी दीर्घा में 120 सीटें हैं, जिनमें मस्ती की भरपूर व्यवस्था है। इनमें बैठने का निमंत्रण दिया गया है अफ्रीका के 52 राष्ट्राध्यक्षों को। निमंत्रित राष्ट्राध्यक्षों में सूडान के उमर-अल-बशीर भी हैं, जो आए तो गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। दारफुर में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत का यह आदेश है। 

बहरहाल इस दीर्घा में कुछ देर के लिए बैठने नेल्सन मंडेला भी आएंगे। इसमें दो पूर्व राष्ट्रपति थाम्बो और एम्बेकी भी होंगे, जिनसे जैकब जूमा की बनती नहीं। इनमें जूमा साहब की पत्नी मा एन्तुली भी होंगी, जिनके बारे में हाल में चर्चा थी कि उनका राष्ट्रपति के किसी बॉडीगार्ड से अफेयर है। इस अफेयर की खबर के फैलते ही बॉडीगार्ड ने आत्महत्या कर ली। कहते हैं एन्तुली गर्भवती हैं। एल्तुली के अलाबा जूमा साहब की दोऔर बेगमें भी आएंगी। उम्मीद है उनके बीच जूमा साहब के पास बैठने को लेकर वैसी भिड़ंत नहीं होगी, जैसी पिछले दिनों किसी कार्यक्रम में हो गई थी। इस दीर्घा का एक आकर्षण लीबिया के मुअम्मार गद्दाफी भी होंगे। इसे और विस्तार से साथ में दिए लिंक के सहारे ब्रटिश अखबार इंडिपेंडेंट में आप पढ़ सकते हैं।



Wednesday, June 9, 2010

कैसा विश्व कप?

बेशक दक्षिण अफ्रीका में हो रहे विश्व कप फुटबॉल के फाइनल राउंड में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमें उतर रहीं हैं, पर इसे विश्व कप कहने के पहले सोचें। इसमे न चीन की टीम है न भारत की। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और रूस भी नहीं। सबसे ज्यादा टीमें युरोप की हैं, क्योंकि सबसे बड़ा कोटा युरोप का है। दुनिया की काफी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व इसमें नहीं है। और न यह खेल के स्तर का परिचायक है।

युरोप में फुटबॉल बहुत खेला जाता है। सारी दुनिया के अच्छे खिलाड़ियों को वे खरीद लाते हैं। पर युरोप का क्षय हो रहा है। उसे खेल की जो अर्थ व्यवस्था चला रही है, वह इंसानियत के लिए बहुत उपयोगी नहीं है।
खेल का कृत्रिम बिजनेस सोसायटी को कुछ देता नहीं। विश्व कप के सहारे दक्षिण अफ्रीका में कुछ आर्थिक गतिविधियाँ होंगी। परिवहन और यातायात सुविधाएं बढ़ेंगी, पर्यटन स्थल विकसित होंगे।  पर अफ्रीका के रूपांतरण के लिए बड़े स्तर पर आर्थिक बदलाव की ज़रूरत होगी।

हमारे लिए इसमें एक संदेश है कि हम खेल को व्यवस्थित करें। जनता का ध्यान खींचने के लिए खेल से बेहतर कुछ नहीं, पर खेल माने आईपीएल नहीं। और खेल माने ऐयाशी भी नहीं।
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