Showing posts with label बीबीसी हिंदी डॉट कॉम. Show all posts
Showing posts with label बीबीसी हिंदी डॉट कॉम. Show all posts

Monday, May 18, 2015

राज्यसभा भी हमारी व्यवस्था का जरूरी हिस्सा है

भारतीय संविधान में राज्यसभा की ख़ास जगह क्यों?

  • 17 मई 2015

अरुण जेटली

राज्यसभा में विपक्ष से हलकान मोदी सरकार के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक साक्षात्कार में कहा कि जब एक चुने हुए सदन ने विधेयक पास कर दिए तो राज्यसभा क्यों अड़ंगे लगा रही है?
जेटली के स्वर से लगभग ऐसा लगता है कि राज्यसभा की हैसियत क्या है?
असल में भारत में दूसरे सदन की उपयोगिता को लेकर संविधान सभा में काफी बहस हुई थी.
आखिरकार दो सदन वाली विधायिका का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि इतने बड़े और विविधता वाले देश के लिए संघीय प्रणाली में ऐसा सदन जरूरी था.
धारणा यह भी थी कि सीधे चुनाव के आधार पर बनी एकल सभा देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए नाकाफी होगी.

क्या राज्यसभा चुनी हुई नहीं?


राज्यसभा

ऐसा नहीं है. बस इसके चुनाव का तरीका लोकसभा से पूरी तरह अलग है.
इसका चुनाव राज्यों की विधान सभाओं के सदस्य करते हैं. चुनाव के अलावा राष्ट्रपति द्वारा सभा के लिए 12 सदस्यों के नामांकन की भी व्यवस्था की गई है.

Saturday, April 25, 2015

इतना शर्मिंदा क्यों होते हैं केजरीवाल?

केजरीवाल बार-बार माफ़ी पर क्यों आ जाते हैं?


केजरीवाल

किसान गजेंद्र सिंह की आत्महत्या पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी ग़लती को माना है.
उनका कहना है कि, "हमें उस दिन अपनी सभा ख़त्म कर देनी चाहिए थी." इस ग़लती का एहसास उन्हें बाद में हुआ.
ग़ालिब का शेर है, "की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा से तौबा, हाय उस ज़ूद-पशेमां (गुनाहगार) का पशेमां (शर्मिंदा) होना."
केजरीवाल का ग़लती मान लेना मानवीय नज़रिए से सकारात्मक और ईमानदार फ़ैसला है. उनकी तारीफ़ होनी चाहिए.
पर पिछले दो साल में वे कई बार ग़लतियों पर शर्मिंदा हो चुके हैं.

क्या यह भी कोई प्रयोग था?


केजरीवाल की किसान रैली

सवाल है कि वे ठीक समय पर पश्चाताप क्यों नहीं करते? देर से क्यों पिघलते हैं? इसलिए शक़ पैदा होता है कि यह शर्मिंदगी ‘रियल’ है या ‘टैक्टिकल?’
क्या आम आदमी पार्टी प्रयोगशाला है? और क्यों जो हो रहा है वह प्रयोग है?
दिसम्बर 2013 में पहले दौर की सरकार बनाने और 49 दिन बाद इस्तीफ़ा देनेके ठोस कारण साफ़ नहीं हुए थे कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में उतरने का फैसला कर लिया.
उसमें फ़ेल होने के बाद फिर से दिल्ली में सरकार बनाने की मुहिम छेड़ी.
इधर, इस साल जब से उन्हें विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता मिली है, पार्टी को ‘अंदरूनी’ बीमारी लग गई है.

Sunday, April 12, 2015

क्या सुषमा स्वराज की उपेक्षा हो रही है?

मोदी और सुषमाः क्या सब कुछ ठीक है?

  • 35 मिनट पहले
मोदी, सुषमा स्वराज, अरुण जेतली, राजनाथ सिंह
मोदी सरकार का एक साल पूरा होने वाला है. इस दौरान उनके तौर-तरीकों को लेकर टिप्पणियाँ होने लगी हैं.
कहा जाता है कि सरकार की सारी ताकत मात्र एक व्यक्ति तक ही सीमित है. वे अपने सहयोगियों को सामने आने का मौका नहीं देते.
पार्टी के भीतर और सरकार दोनों में, सत्ता मोदी या उनके विश्वास-पात्रों तक ही सीमित है. उदाहरण के लिए सुषमा स्वराज की बात करते हैं, जो अपनी वरिष्ठता और अनुभव के लिहाज से दबकर काम करती हैं.

पढ़ें विस्तार से

दिग्यविजय सिंह
शनिवार की सुबह कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया, "जिस वक्त नरेंद्र मोदी विदेश में समझौतों पर दस्तख़त कर रहे हैं, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज विदिशा, मध्य प्रदेश में मोदी की भावी उपलब्धियों का प्रचार कर रही हैं."
इसके ठीक पहले उन्होंने एक और ट्वीट किया, "जिस वक्त प्रधानमंत्री फ्रांस में हवाई जहाज़ खरीद रहे थे, उस वक्त गोवा में हमारे रक्षामंत्री मछली खरीद रहे थे! मिनिमम गवर्नमेंट एंड मैक्सीमम गवर्नेंस."

कैसा है यह धुआं?

दिग्विजय सिंह अनुभवी नेता हैं. वे शिष्टाचार को बेहतर जानते हैं. प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्री या रक्षामंत्री के होने की अनिवार्यता नहीं है. इसके पहले किसी ने कभी ध्यान नहीं दिया होगा कि प्रधानमंत्रियों के दौरे में विदेश मंत्री जाते रहे हैं या नहीं.
दिग्विजय सिंह भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखा है. मोदी सरकार को असमंजस में डालने का मौका मिलेगा तो वे चूकेंगे नहीं. यह व्यावहारिक राजनीति है. सवाल उस आग का है जो इस धुएं के पीछे है.
क्या यह माने कि दिग्विजय सिंह मोदी जी से कह रहे हैं कि अपने काबिल मंत्रियों की उपेक्षा न करें? अलबत्ता यह बात सुषमा स्वराज पर लागू हो भी सकती है, मनोहर पर्रिकर पर नहीं.

Thursday, March 12, 2015

क्या ‘स्वांग’ साबित होगी आम आदमी कथा?

भगवती चरण वर्मा की कहानी ‘दो बांके’ का अंत कुछ इस प्रकार होता है... इस पार वाला बांका अपने शागिर्दों से घिरा हुआ चल रहा था. शागिर्द कह रहे थे, ”उस्ताद इस वक्त बड़ी समझदारी से काम लिया, वरना आज लाशें गिर जातीं. उस्ताद हम सब के सब अपनी-अपनी जान दे देते...!”

इतने में किसी ने बांके से कहा, “मुला स्वांग खूब भरयो.” 


यह बात सामने खड़े एक देहाती ने मुस्कराते हुए कही थी. उस वक्त बांके खून का घूंट पीकर रह गए। उन्होंने सोचा-एक बांका दूसरे बांके से ही लड़ सकता है, देहातियों से उलझना उसे शोभा नहीं देता. और शागिर्द भी खून का घूंट पीकर रह गए. उन्होंने सोचा-भला उस्ताद की मौजूदगी में उन्हें हाथ उठाने का कोई हक भी है?

आम आदमी पार्टी की कथा भी क्या स्वांग साबित होने वाली है?


आप: 'एक अनूठे प्रयोग का हास्यास्पद हो जाना'




केजरीवाल, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव

दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कथित तौर पर विधायकों की खरीद-फ़रोख्त का आरोप लगने के बाद आम आदमी पार्टी की राजनीति पर कुछ दाग लगते नज़र आ रहे हैं. ख़ास बात ये है कि आम आदमी पार्टी पर ये दाग कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी ने नहीं बल्कि उसके पू्र्व सहयोगियों ने लगाए हैं.
ऐसे सहयोगी जो पहले दोस्त थे, उन्हें अब 'सहयोगी' कहना अनुचित होगा. आम आदमी पार्टी पर बीते कुछ दिनों में कई तरह की तोहमतें लगी हैं. उसी कड़ी मेें नई तोहमत ये है कि एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सामने आई है जिसमें अरविंद केजरीवाल पर कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश का आरोप है.
ये तब की बात बताई जा रही है जब दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा था और नए सिरे से विधानसभा के चुनाव नहीं हुए थे.

पढ़ें विस्तार से



आम आदमी पार्टी समर्थक

आम आदमी पार्टी की फ़ज़ीहत के लिए यह टेप ही काफी नहीं था. इसके बाद योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने चिट्ठी जारी की जिसमें सफाई कम आरोप ज़्यादा थे.
योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति से जिस तरह निकाला गया और उसके बाद यह मसला खींचतान के साथ जिस मोड़ पर आ गया है, उससे नेताओं का जो भी बने, पार्टी समर्थकों का मोहभंग ज़रूर होगा. दोनों तरफ के आरोपों ने पार्टी की कलई उतार दी है.
इस घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति के एक अभिनव प्रयोग को हास्यास्पद बनाकर रख दिया है. लोकतांत्रिक मूल्य-मर्यादाओं की स्थापना का दावा करने वाली पार्टी संकीर्ण मसलों में उलझ गई. उसके नेताओं का आपसी अविश्वास खुलकर सामने आ गया.

केजरीवाल का वर्चस्व



केजरीवाल, मयंक गांधी

'नई राजनीति' के 'प्रवर्तक' अरविंद केजरीवाल पर उनके ही 'साथियों' ने विधायकों की ख़रीद-फ़रोख्त का आरोप लगाया है.
योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने पार्टी की रीति-नीति को निशाना बनाया है पर मामला इतना ही नहीं लगता. इसमें कहीं न कहीं व्यक्तिगत स्वार्थ और अहम का टकराव भी है.
यह स्वस्थ आत्ममंथन तो नहीं है. इस झगड़े के बाद पार्टी में अरविंद केजरीवाल का वर्चस्व ज़रूर कायम हो जाएगा, पर गुणात्मक रूप से पार्टी को ठेस लग चुकी है.

Tuesday, December 23, 2014

राजनीति अब और करवट लेगी

राष्ट्रीय राजनीति में भारी बदलाव की आहट

  • 3 मिनट पहले
जम्मू-कश्मीर, चुनाव
भारत प्रशासित जम्‍मू कश्‍मीर राज्य और झारखंड के विधानसभा चुनाव परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव क्षेत्र के विस्तार को स्थापित किया है.
दोनों राज्यों में उसे अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल हुई है. जम्मू-कश्मीर में पार्टी पहली बार असाधारण रूप से महत्वपूर्ण स्थिति में पहुँच गई है.
इससे केवल राज्य की राजनीति ही प्रभावित नहीं होगी, बल्कि इसका व्यापक राष्ट्रीय असर होगा. सम्भवतः भाजपा की अनेक अतिवादी धारणाएं पृष्ठभूमि में चली जाएंगी.
उसे राष्ट्रीय राजनीति के बरक्स अपने भीतर लचीलापन पैदा करना होगा.

पढ़ें लेख विस्तार से

भाजपा, समर्थक
भाजपा का दावा है कि जम्मू-कश्मीर का मौजूदा चुनाव उसकी दीर्घकालीन राजनीति का एक चरण है. यानी वह राज्य में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाने का इरादा रखती है.
इसकी परीक्षा अगले एक-दो दिन में ही हो जाएगी. देखना यह होगा कि क्या पार्टी कश्मीर में सरकार बनाने की कोशिश करेगी.
दूसरी ओर झारखंड में भाजपा को पिछली बार की तुलना में सफलता ज़रूर मिली है, पर उसे गठबंधन का सहारा लेना होगा.
यानी राज्य को गठबंधन-राजनीति से पूरी तरह मुक्ति नहीं मिलेगी. इसका मतलब यह भी है कि पार्टी ने सही समय पर वक़्त की नब्ज़ को पढ़ा और आजसू (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) से गठबंधन किया.

Sunday, December 21, 2014

उत्साहवर्धक है कश्मीर की वोटिंग

बहुत कुछ कहता है भारी मतदान

  • 51 मिनट पहले

चुनाव, कश्मीर

झारखंड और भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव अपने राजनीतिक निहितार्थ के अलावा सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से महत्वपूर्ण होते हैं.
इन दोनों राज्यों में शांतिपूर्ण तरीक़े से मतदान होना चुनाव व्यवस्थापकों की सफलता को बताता है और मतदान का प्रतिशत बढ़ना वोटर की जागरूकता को.
दोनों राज्यों के हालात एक-दूसरे से अलग हैं, पर दोनों जगह एक तबक़ा ऐसा है जो चुनावों को निरर्थक साबित करता है.
इस लिहाज से भारी मतदान होना वोटर की दिलचस्पी को प्रदर्शित करता है.

पढ़ें लेख विस्तार से


चुनाव, कश्मीर

भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और झारखंड में माओवादियों का डर था.
दोनों राज्यों में भारी मतदान हुआ. यूं भी सन 2014 को देश में भारी मतदान के लिए याद किया जाएगा. साल का अंत भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछ अच्छी यादें छोड़कर जा रहा है.
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में पिछले 25 साल का सबसे भारी मतदान इस बार हुआ है.
सन 2002 के विधान सभा चुनावों ने कश्मीर में नया माहौल तैयार किया था, पर घाटी में मतदान काफ़ी कम होता था. पर इस बार कहानी बदली हुई है.
इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण पहले और दूसरे दौर का मतदान था. दोनों में 71 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े.

Sunday, December 14, 2014

मोदी के गले की फाँस बनेगा हार्डकोर हिन्दुत्व

मोदी के गले की हड्डी ‘कट्टर हिंदुत्व’

  • 28 मिनट पहले

नरेंद्र मोदी का कार्टून

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद देश में कुछ दिनों तक हिन्दुत्व को लेकर शांति रही.
लोकसभा चुनाव के आख़िरी दौर में कुछ मसले ज़रूर उठे थे, लेकिन मोदी ने उन्हें तूल नहीं दिया.
अब ‘कट्टर हिन्दुत्व’ नरेंद्र मोदी सरकार के गले की फाँस बनता दिख रहा है.

पढ़ें, लेख विस्तार से


गिरिराज सिंह, भाजपा नेता, बिहार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘कट्टरपंथी’ माना जाता है, पर चुनाव अभियान में उन्होंने राम मंदिर की बात नहीं की, बल्कि गिरिराज सिंह और प्रवीण तोगड़िया जैसे नेताओं को कड़वे बयानों से बचने की सलाह दी.
उनके रुख़ के विपरीत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सहयोगी संगठनों से जुड़े कुछ नेता विवादित मुद्दों को हवा दे रहे हैं. जैसे, विहिप नेता अशोक सिंघल ने दावा किया कि दिल्ली में 800 साल बाद 'गौरवशाली हिंदू' शासन करने आए हैं.

नरेंद्र मोदी, हिन्दुत्व, भाजपा

साध्वी निरंजन ज्योति और योगी आदित्यनाथ के तीखे तेवरों के बीच साक्षी महाराज का नाथूराम गोडसे के महिमा-मंडन का बयान आया. बयान बाद में उसे वापस ले लिया गया, पर तीर तो चल चुका था.
इधर, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाइक ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर जल्द से जल्द बनना चाहिए. इसी तरह ‘धर्म जागरण’ और ‘घर वापसी’ जैसी बातें पार्टी की नई राजनीति से मेल नहीं खातीं.

Monday, December 8, 2014

योजना आयोग : काम बदलें या नाम?

कांग्रेसी 'योजना' बनाम भाजपाई 'आयोग'

  • 1 घंटा पहले
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
भारत संघ के राज्यों के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ.
रविवार को दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की बैठक में योजना आयोग को लेकर मचे घमासान और राजनीति का पटाक्षेप नहीं हुआ.
बल्कि लगता है कि इसे लेकर राजनीति का नया दौर शुरू होगा.
यह संस्था जवाहरलाल नेहरू ने शुरू ज़रूर की थी लेकिन इसके रूपांतरण की बुनियाद साल 1991 में बनी कांग्रेस सरकार ने ही डाली थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्ति और विचारक के रूप में नेहरूवादी विरोधी के रूप में उभरे हैं.

कांग्रेस का मोह

राहुल गांधी, सोनिया गांधी
उन्होंने इस साल लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अपने पहले संदेश में योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा करके व्यवस्था-परिवर्तन के साथ-साथ प्रतीक रूप में अपने नेहरू विरोध को भी रेखांकित किया था.
लगता यह भी है कि कांग्रेस को इसके नाम से मोह है.
वह शायद चाहती है कि इसका काम बदल जाए, पर नाम न बदले. दूसरी ओर सारी कवायद नाम की लगती है. काम घूम-फिरकर फिर वैसा ही रहेगा.

Friday, December 5, 2014

सहमे विपक्ष को साध्वी का सहारा

डूबते विपक्ष के लिए साध्वी बनी तिनका

  • 2 घंटे पहले
साध्वी निरंजन ज्योति
भारतीय जनता पार्टी सरकार के छह महीने बीत जाने के बाद भी सहमे-सहमे विपक्ष को केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के बयान से तिनके जैसा सहारा मिला है.
सोलहवीं लोकसभा के शीतकालीन सत्र में पहली बार एकताबद्ध विपक्षी राजनीति गरमाती नज़र आ रही है. ऐसे में साध्वी का बयान पार्टी के लिए बेहद नाज़ुक मोड़ पर सेल्फ़ गोल जैसा घातक साबित हुआ है.
पिछले छह महीने से नरेंद्र मोदी अपने समर्थकों को आश्वस्त और विरोधियों को परास्त करने में सफल रहे हैं. उनके बड़े से बड़े आलोचक भी मान रहे थे कि येन-केन प्रकारेण नरेंद्र मोदी हवा को अपने पक्ष में बहाने में कामयाब हैं.

हनीमून की समाप्ति

मोदी मंत्रमंडल
मोदी के आलोचक मानते हैं कि यह हनीमून है जो लम्बा खिंच गया है. साध्वी प्रकरण की वजह से यह हनीमून ख़त्म नहीं हो जाएगा और न ही मोदी की हवा निकल जाएगी.
अलबत्ता इससे भाजपा के वैचारिक अंतर्विरोध खुलेंगे. इसके अलावा संसद में हंगामों का श्रीगणेश हुआ. दोनों सदनों में तीन दिन से गहमागहमी है.
गुरुवार को राज्यसभा को पूरे दिन के लिए स्थगित करना पड़ा. यानी विपक्ष को एक होने और वार करने का मौका मिला है.