Showing posts with label नवोदय टाइम्स. Show all posts
Showing posts with label नवोदय टाइम्स. Show all posts

Sunday, April 2, 2017

क्या उत्तर देगा योगी का प्रश्न प्रदेश?

सन 2014 के चुनाव से साबित हो गया कि दिल्ली की सत्ता का दरवाजा उत्तर प्रदेश की जमीन पर है। दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस के सफाए की शुरुआत उत्तर प्रदेश से ही हुई थी। करीब पौने तीन दशक तक प्रदेश की सत्ता गैर-कांग्रेसी क्षेत्रीय क्षत्रपों के हवाले रही। और अब वह भाजपा के हाथों आई है। क्या भाजपा इस सत्ता को संभाल पाएगी? क्या यह स्थायी विजय है? क्या अब गैर-भाजपा राजनीतिक शक्तियों को एक होने का मौका मिलेगा? क्या उनके एक होने की सम्भावना है? सवाल यह भी है कि क्या उत्तर प्रदेश के सामाजिक चक्रव्यूह का तोड़ भाजपा ने खोज लिया है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक योगी को बैठाकर बहुत बड़ा प्रयोग किया है। क्या यह प्रयोग सफल होगा? पार्टी अपनी विचारधारा का बस्ता पूरी तरह खोल नहीं रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने उसका मनोबल बढ़ाया है। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव और होने वाले हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक में होंगे। योगी-सरकार स्वस्थ रही तो पार्टी एक मनोदशा से पूरी तरह बाहर निकल आएगी। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि इस प्रयोग का फौरी परिणाम क्या होगा? क्या उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव महसूस करेगी?

Sunday, February 19, 2017

अम्मा से चिनम्मा उर्फ किस्सा चेन्नई

तमिलनाडु के सत्ता-संघर्ष में बारह मसाले की चटनी का स्वाद आ रहा है। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था सामंती तौर-तरीकों के माया-जाल में घिर गई है, यह साफ नजर आ रहा है। व्यक्ति पूजा और चाटुकारिता के सारे प्रतिमान तमिलनाडु की राजनीति में टूटते रहे हैं। शनिवार को शशिकला खेमे के ई पलनीसामी की सरकार ने विश्वासमत जरूर हासिल कर लिया है, पर ओ पन्नीरसेल्वम को जनता की हमदर्दी हासिल हुई है। कहानी अभी जारी है।
अम्मा से चिनम्मा की यह कहानी रोमांचक मोड़ों से भरी है। हर किस्म की नाटकीयता इसमें शामिल है। दरबारी साजिशों और षड्यंत्रों का तड़का भी। गिरफ्तारी के पहले वीके शशिकला ने अम्मा की समाधि पर जाकर जिस अंदाज में अपने दाएं हाथ को जमीन पर मारा था उससे यह भी पता लगा कि जयललिता से उन्होंने और कुछ सीखा हो या न सीखा हो, अभिनय जरूर सीखा है।

Saturday, February 11, 2017

अब शुरू हुई ‘असल उत्तर’ की लड़ाई

देश वो जीतेगा, जो जीता उत्तर प्रदेश
सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले देश की सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई उत्तर भारत के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में शुरू होने वाली है। दिल्ली का दरवाजा उत्तर प्रदेश से खुलता है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी पहले दो दौर बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। इन दो दौरों में प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा कवर होता है। प्रदेश की 403 में से 140 सीटें इस इलाके में हैं। परम्परा से यह बसपा और एक हद तक सपा का प्रभाव क्षेत्र है, पर सन 2014 के लोकसभा चुनाव में सारे समीकरण बदल गए हैं। इस बार का चुनाव बताएगा कि बीजेपी का वह रसूख अभी बचा है या नहीं।

Friday, April 24, 2015

खेती के सहारे हमेशा काम नहीं चलेगा

बुधवार को दो खराब खबरें एक साथ मिलीं। राजस्थान से आए किसान गजेंद्र  सिंह की आत्महत्या और भारतीय मौसम विभाग का इस साल के मॉनसून को लेकर पूर्वानुमान। गाँवों के लिए दोनों खबरें दहशत पैदा करने वाली हैं। हमारी 60 फीसदी फसलें पूरी तरह बारिश के पानी पर निर्भर हैं। गजेंद्र सिंह की आत्महत्या के बारे में राय व्यक्त करने के पहले समझना होगा कि वे हालात क्या थे जिनमें उनकी मौत हुई। क्या वे सिर्फ धमकी देना चाहते थे? या फिर उनका इस्तेमाल किया गया? क्या वे दुर्घटना के शिकार हुए? अफसोस इस बात का है कि मीडिया के लिए यह एक सनसनीखेज घटना से ज्यादा बड़ी बात नहीं थी और राजनीति अपना पॉइंट स्कोर करने के लिए इस बात का इस्तेमाल करना चाहती है।

Friday, December 5, 2014

रामलला से दूर जाती भाजपा


राम मंदिर के मुद्दे से भाजपा ने कब किनाराकशी शुरू की यह कहना मुश्किल है, पर इतना साफ है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पार्टी के हिंदुत्व को सिर-माथे पर लेकर नहीं चल रही है। सन 1992 के बाद 6 दिसम्बर की तारीख कई बार आई और गई। भाजपा ने इस मसले पर बात करना ही बंद कर दिया है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से केंद्र में यह तीसरा सरकार है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी की प्रभावी भूमिका है। 1998 और 1999 में बनी सरकारें एनडीए की थीं। मान लिया उनमें सहयोगी दलों की सहमति मंदिर बनाने को लेकर नहीं थी। पर इस बार भाजपा अपने बूते बहुमत हासिल करके आई है। फिर भी वह राम मंदिर पर मौन है। क्या वजह है कि यह मसला भाजपा की राजनीति में टॉप से बॉटम पर आ गया है?

Sunday, August 24, 2014

अनायास नहीं है नियंत्रण रेखा पर घमासान

जम्मू-कश्मीर की नियंत्रण रेखा से जो खबरें आ रहीं है वे चिंता का विषय बनती जा रही हैं। शुक्र और शनिवार की आधी रात के बाद से अर्निया और रघुवीर सिंह पुरा सेक्टर में जबर्दस्त गोलाबारी चल रही है। इसमें कम से कम दो नागरिकों के मरने और छह लोगों के घायल होने की खबरें है। पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने भारत की 22 सीमा चौकियों और 13 गाँवों पर जबर्दस्त गोलाबारी की है। पुंछ जिले के हमीरपुर सब सेक्टर में भी गोलाबारी हुई है। उधर पाकिस्तानी मीडिया ने भी सियालकोट क्षेत्र में भारतीय सेनाओं की और से की गई गोलाबारी का जिक्र किया है और खबर दी है कि उनके दो नागरिक मारे गए हैं और छह घायल हुए हैं। मरने वालों में एक महिला भी है।
सन 2003 का समझौता होने के पहले नियंत्रण रेखा पर भारी तोपखाने से गोलाबारी होती रहती थी। इससे सीमा के दोनों और के गाँवों का जीवन नरक बन गया था। क्या कोई ताकत उस नरक की वापसी चाहती है? चाहती है तो क्यों? बताया जाता है कि सन 2003 के बाद से यह सबसे जबर्दस्त गोलाबारी है। भारतीय सुरक्षा बलों ने इस इलाके की बस्तियों से तकरीबन 3000 लोगों को हटाकर सुरक्षित स्थानों तक पहुँचा दिया है। अगस्त के महीने में नियंत्रण रेखा के उल्लंघन की बीस से ज्यादा वारदात हो चुकी हैं। अंदेशा इस बात का है कि यह गोलाबारी खतरनाक स्तर तक न पहुँच जाए।
सुरंग किसलिए?
भारतीय सुरक्षा बलों ने इस बीच एक सुरंग का पता लगाया है जो सीमा के उस पार से इस पार आई है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान की और से घुसपैठ की कोशिशें खत्म नहीं हुईं हैं। आमतौर पर सर्दियों के पहले घुसपैठ कराई जाती है। बर्फबारी के बाद घुसपैठ कराना मुश्किल हो जता है। दो-एक मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें कोई नागरिक रास्ता भटक जाए या कोई जानवर सीमा पार कर जाए, पर उतने पर भारी गोलाबारी नहीं होती। आमतौर पर फायरिंग कवर घुसपैठ करने वालों को दिया जाता है ताकि उसकी आड़ में वे सीमा पार कर जाएं। अंदेशा इस बात का है कि पाकिस्तान के भीतर एक तबका ऐसा है जो अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी का इंतज़ार कर रहा है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में वहाबी ताकत पुनर्गठित हो रही है। कहीं यह उसकी आहट तो नहीं?

Tuesday, June 10, 2014

असम्भव तो नहीं, पर है यह अविश्वसनीय-स्वप्न


संसद के दोनों सदनों के सामने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में केंद्र की नई सरकार का आत्मविश्वास बोलता है। पिछली सरकार के भाषणों के मुकाबले इस सरकार के भाषण में वैश्वीकरण और आर्थिक उदारीकरण एक सचाई के रूप में सामने आता है, मजबूरी के रूप में नहीं। उसमें बुनियादी तौर पर बदलते भारत का नक्शा है। फिर भी इस भाषण को अभी एक राजनेता का सपना ही कह सकते हैं। इसमें एक विशाल परिकल्पना है, पर उसे पूरा करने की तज़बीज़ नजर नहीं आती। बेशक कुछ करने के लिए सपने भी देखने होते हैं। मोदी ने यह सपना देखा है तो सम्भव है वे अपने पुरुषार्थ से इसे पूरा करके भी दिखाएं। सम्भव है कि सारी कायनात इस सपने को पूरा करने में जुट जाएं। असम्भव तो कुछ भी नहीं है।

नरेंद्र मोदी जनता की कल्पनाओं को उभारने वाले नेता हैं। उनकी सरकार अपने हर कदम को रखने के पहले उसके असर को भी भाँप कर चलती है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नज़र डालें तो उसमें देश के टेक्नोट्रॉनिक बदलाव की आहट है तो सामाजिक क्षेत्र में बदलाव का वादा भी है। महिलाओं के आरक्षण को प्रतीक बनाकर आधी आबादी की आकांक्षाओं को रेखांकित किया है तो हर हाथ को हुनर और हर खेत को पानी का भरोसा दिलाया गया है। यह भाषण मध्यवर्गीय भारत की महत्वाकांक्षाओं को भी परिलक्षित करता। देश में एक सौ नए शहरों का निर्माण, अगले आठ साल में हर परिवार को पक्का मकान, गाँव-गाँव तक ब्रॉडबैंड पहुँचाने का वादा और हाई स्पीड ट्रेनों के हीरक चतुर्भुज तथा राजमार्गों के स्वर्णिम चतुर्भुज के अधूरे पड़े काम को पूरा करने का वादा किया है। न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन के मंत्र जैसी शब्दावली से भरे इस भाषण पर नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत मुहर साफ दिखाई पड़ती है। ट्रेडीशन, टैलेंट, टूरिज्म, ट्रेड और टेक्नोलॉजी के 5-टी के सहारे ब्रांड-इंडिया को कायम करने की मनोकामना इसके पहले नरेंद्र मोदी किसी न किसी रूप में व्यक्त करते रहे हैं।