सन 2014 के चुनाव से साबित हो गया कि दिल्ली की सत्ता का दरवाजा उत्तर प्रदेश की जमीन पर है। दिल्ली की सत्ता से कांग्रेस के सफाए की शुरुआत उत्तर प्रदेश से ही हुई थी। करीब पौने तीन दशक तक प्रदेश की सत्ता गैर-कांग्रेसी क्षेत्रीय क्षत्रपों के हवाले रही। और अब वह भाजपा के हाथों आई है। क्या भाजपा इस सत्ता को संभाल पाएगी? क्या यह स्थायी विजय है? क्या अब गैर-भाजपा राजनीतिक शक्तियों को एक होने का मौका मिलेगा? क्या उनके एक होने की सम्भावना है? सवाल यह भी है कि क्या उत्तर प्रदेश के सामाजिक चक्रव्यूह का तोड़ भाजपा ने खोज लिया है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक योगी को बैठाकर बहुत बड़ा प्रयोग किया है। क्या यह प्रयोग सफल होगा? पार्टी अपनी विचारधारा का बस्ता पूरी तरह खोल नहीं रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने उसका मनोबल बढ़ाया है। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव और होने वाले हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक में होंगे। योगी-सरकार स्वस्थ रही तो पार्टी एक मनोदशा से पूरी तरह बाहर निकल आएगी। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि इस प्रयोग का फौरी परिणाम क्या होगा? क्या उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव महसूस करेगी?
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक योगी को बैठाकर बहुत बड़ा प्रयोग किया है। क्या यह प्रयोग सफल होगा? पार्टी अपनी विचारधारा का बस्ता पूरी तरह खोल नहीं रही थी। उत्तर प्रदेश के चुनाव ने उसका मनोबल बढ़ाया है। इस साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव और होने वाले हैं। उसके बाद अगले साल कर्नाटक में होंगे। योगी-सरकार स्वस्थ रही तो पार्टी एक मनोदशा से पूरी तरह बाहर निकल आएगी। फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि इस प्रयोग का फौरी परिणाम क्या होगा? क्या उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव महसूस करेगी?