राज्यसभा में सरकार ने गुरुवार को विपक्षी एकजुटता के चक्रव्यूह को
तोड़कर कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष के सामने चुनौती पैदा कर दी है। इसके एक दिन पहले ही कांग्रेस ने सूचना
के अधिकार (आरटीआई) संशोधन और तीन तलाक सहित सात विधेयकों का रास्ता राज्यसभा में रोकने
की रणनीति तैयार की थी। यह रणनीति पहले दिन ही धराशायी हो गई। सत्तारूढ़ दल ने
विरोधी-एकता में सेंध लगाने में कामयाबी हासिल कर ली।
लोकसभा चुनाव में भारी पराजय का सामना करने के बाद विरोधी, दलों खासतौर से
कांग्रेस के सामने चुनौती है कि अब क्या किया जाए। पार्टी के पास संसद के भीतर
आक्रामक मुद्रा अपनाने का मौका है, पर कैसे? दूसरी तरफ उसके
सामने संसद से बाहर सड़क पर उतरने का विकल्प है, पर कैसे? सवाल नेतृत्व
का है और विचारधारा का। पार्टी के सामने केवल नेतृत्व का संकट नहीं है। उससे
ज्यादा विचारधारा का संकट है। पार्टी अब ट्विटर के भरोसे है।
राज्यसभा में घटता रसूख
लोकसभा में कुछ किया नहीं जा सकता। केवल राज्यसभा में ही संख्याबल के सहारे
सत्तारूढ़ दल पर एक सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है, पर इसके लिए क्षेत्रीय दलों
के साथ सहमति तैयार करनी होगी। फिलहाल लगता है कि कांग्रेस को इसमें सफलता नहीं
मिल रही है। बीजू जनता दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति, अद्रमुक और वाईएसआर कांग्रेस
का रुझान केन्द्र सरकार के पक्ष में नजर आ रहा है। यह समर्थन लोकसभा चुनाव के
दौरान भी नजर आ गया था।