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Saturday, March 7, 2015

मीडिया में इंडियाज़ डॉटर

Surendra's Cartoon in The Hindu
India's Daughter: activists asking for postponement give legitimacy to illegal censorship
In their letter dated March 5, 2015 to NDTV, a group of activist lawyers and civil liberties campaigners have listed 13-odd reasons for requesting the channel to postpone the broadcast of Leslee Udwin’s film India’s Daughter till the Supreme Court delivers its verdict on the appeals lodged by those convicted and sentenced to death for committing the December 2012 Delhi gang rape. They state that the documentary’s centre-point is the interview with Mukesh Singh, one of the convicts on death row, in which he protests his innocence by asserting that the now-deceased victim was solely responsible for her plight; in fact, he nonchalantly claims that she deserved to be taught a lesson. According to them, this inculpatory statement could seriously prejudice his chances of escaping the hangman’s noose when the Supreme Court hears his appeal.
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'इंडियाज़ डॉटर' पर क्या कहते हैं लोग?

दिसंबर 2012 में दिल्ली में एक छात्रा के साथ हुए गैंगरेप और उसकी हत्या पर बनी डॉक्यूमेंट्री पर भारत में भी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं.

Sunday, March 1, 2015

बजट पर मीडिया

मोदी सरकार के आम बजट को लेकर अखबारों की कवरेज इस बार काफी मतभ्रम की शिकार नजर आई। हिन्दी अखबार तो यों ही ज्यादातर शाब्दिक बाजीगरी का सहारा लेते रहे हैं, अंग्रेजी के अखबार भी फीके नजर आए। अलबत्ता अखबारों के सम्पादकीय पेजों पर बजट को समझने की कोशिश की गई है। अमर उजाला के पहले सफे के शीर्षक और सम्पादकीय पेज की सामग्री में विसंगति दिखाई पड़ती है। नवभारत टाइम्स विश्वकप क्रिकेट के प्रोमो 'मौका-मौका' से प्रभावित है। हिन्दुस्तान ने अपने ही कई साल पुराने क्रिकेट के रूप का इस्तेमाल किया है।  इन कोशिशों में विषय को समझने की गम्भीरता नजर नहीं आती। बजट पर मीडिया का नजरिया पेश हैः-  

Thursday, February 12, 2015

राजस्थान से आई यह निराली बधाई


11 फरवरी के राजस्थान पत्रिका, जयपुर के पहले पेज के जैकेट पर निराला विज्ञापन प्रकाशित हुआ। इसमें दिल्ली के विधान सभा चुनाव में 3 सीटें जीतने पर भाजपा को बधाई दी गई है। यह बधाई प्रतियोगिता परीक्षाओं से जुड़ी किताबें छापने वाले एक प्रकाशन की ओर से है। प्रकाशन के लेखक नवरंग राय, रोशनलाल और लाखों बेरोजगार विद्यार्थियों की ओर से यह बधाई दी गई है। इसमें ड़क्टर से राजनेता बने वीरेंद्र सिंह से अनुरोध किया गया है कि वे राजस्थान में आम आदमी पार्टी का नेतृत्व करें और उसे नए मुकाम पर पहुँचाएं। पिछले लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र सिंह आम आदमी पार्टी के टिकट पर लड़े थे। 

Sunday, February 1, 2015

किरण बेदी पहली आईपीएस हैं या नहीं?



सोशल मीडिया पर खबरें हैं कि किरण बेदी पहली महिला आईपीएस अधिकारी नहीं हैं। इसके पक्ष में एक अखबारी कतरन लगाई है। वास्तव में तथ्य क्या है यह बाद की बात है एक तथ्य यह सामने आया कि इंटरनेट पर ऐसी साइट्स जो अखबारों की फर्जी कतरनें तैयार करती हैं। नीचे मैं वह कतरन लगा रहा हूँ जो सोशल मीडिया में वायरल हुई है साथ ही उसी अंदाज में बनाई गई कतरनें भी हैं। इन्हें देख कर अंदाज लगाया जा सकता है कि सुरजीत कौर वाली कतरन भी फर्जी है। अलबत्ता सच क्या है इसकी छानबीन होनी चाहिए। अखबारों की कतरनें तैयार करने वाली एक साइट का यूआरएल इस प्रकार है http://www.fodey.com/generators/newspaper/snippet.asp

Tuesday, January 27, 2015

गणतंत्र दिवस पर मोदी की छाप

गणतंत्र दिवस परेड पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छाप सायास या अनायास दिखाई पड़ी। जिनमें से कुछ हैं:-

मेक इन इंडिया का मिकेनिकल शेर
प्रधानमंत्री जन-धन योजना की झाँकी
बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ झाँकी
गुजरात की झाँकी में पटेल की प्रतिमा
आयुष मंत्रालय की झाँकी
बुलेट ट्रेन की प्रतिकृति
स्वच्छ भारत की अपील करता स्कूली बच्चों का समूह नृत्य
कार्यक्रम में बराक ओबामा सहित तमाम अतिथि अपने हाथों में छाते छामे नजर आए। किसी को पहले से इस बात का अंदेसा नहीं था। शायद अगले साल से विशिष्ट अतिथियों के मंच के ऊपर शीशे की छत लगेगी।

आज दिल्ली के कुछ  अखबार प्रकाशित हुए हैं जिनसे कार्यक्रम की रंगीनी के अलावा मीडिया की दृष्टि भी नजर आती है। आज की कुछ कतरनें

नवभारत टाइम्स


इंडियन एक्सप्रेस





Thursday, January 8, 2015

रोमन हिन्दी के बारे में चेतन भगत की राय

आज यानी 8 जनवरी के दैनिक भास्कर में चेतन भगत ने रोमन हिन्दी के बारे में एक लेख लिखा है। इस लेख को पढ़कर अनेक लोगों की प्रतिक्रिया होगी कि चेतन भगत के लेख को गम्भीरता से नहीं लेना चाहिए। यह प्रतिक्रिया या दंभ से भरी होती है या नादानी से भरी। जो वास्तव में उपस्थित है उससे मुँह मोड़कर आप कहाँ जाएंगे? भाषा अपने बरतने वालों के कारण चलती या विफल होती है, विशेषज्ञों के कारण नहीं। विशेषज्ञता वहाँ तक ठीक है जहाँ तक वह वास्तविकता को ठीक से समझे। बहरहाल आपकी जो भी राय हो, यदि आप इस लेख को पढ़ना चाहें तो यहाँ पेश हैः-

हमारे भारतीय समाज में हमेशा चलने वाली एक बहस हिंदी बनाम अंग्रेजी के महत्व की रही है। वृहद स्तर पर देखें तो इस बहस का विस्तार किसी भी भारतीय भाषा बनाम अंग्रेजी और किस प्रकार हमने अंग्रेजी के आगे स्थानीय भाषाओं को गंवा दिया इस तक किया जा सकता है। यह राजनीति प्रेरित मुद्‌दा भी रहा है। हर सरकार हिंदी के प्रति खुद को दूसरी सरकार से ज्यादा निष्ठावान साबित करने में लगी रहती है। नतीजा ‘हिंदी प्रोत्साहन’ कार्यक्रमों में होता है जबकि सारे सरकारी दफ्तर अनिवार्य रूप से हिंदी में सर्कुलर जारी करते हैं और सरकारी स्कूलों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में रखी जाती है।

इस बीच देश में अंग्रेजी लगातार बढ़ती जा रही है। बिना प्रोत्साहन कार्यक्रमों और अभियानों के यह ऐसे बढ़ती जा रही है, जैसी पहले कभी नहीं बढ़ी। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि इसमें कॅरिअर के बेहतर विकल्प हैं, समाज में इसे अधिक सम्मान प्राप्त है और यह सूचनाओं व मनोरंजन की बिल्कुल नई दुनिया ही खोल देती है तथा इसके जरिये नई टक्नोलॉजी तक पहुंच बनाई जा सकती है। जाहिर है इसके फायदे हैं।



नव संवत्सर और नवरात्र आरम्भ के मौके पर सुबह से मोबाइल फोन पर शुभकामना संदेश आने लगे। पहले मकर संक्रांति, होली-दीवाली, ईद और नव वर्ष संदेश आए। काफी संदेश हिन्दी में हैं, खासकर मकर संक्रांति और नवरात्रि संदेश तो ज्यादातर हिन्दी में हैं। और ज्यादातर हिन्दी संदेश रोमन लिपि में।
मोबाइल फोन पर चुटकुलों, शेर-ओ-शायरी और सद्विचारों के आदान-प्रदान का चलन बढ़ा है। संता-बंता जोक तो हिन्दी में ही मज़ा देते हैं। रोमन के इस्तेमाल से हिन्दी और अंग्रेजी की मिली-जुली भाषा भी विकसित हो रही है। क्या ऐसा पहली बार हो रहा है?

Sunday, December 28, 2014

Ironies of INDIA हमारी विसंगतियाँ

A policeman makes us nervous rather than feeling safe

A boy writes a brilliant 1500 words essay in IAS exam on how Dowry is a social evil. One year later He demands a dowry of 1 crore.

We are obsessed with screen guards on our smartphones but don't wear helmet riding bikes.


We teach 'Not to Get Raped', rather 'Don't Rape' !

Worst movies earn most.

A porn-star is accepted as celebrity, but a rape victim is not accepted as a normal human being.

इधर-उधऱ से जोड़ी गई कुछ और सामग्री



Wednesday, December 24, 2014

Modi year ends on Modi note आज के कुछ पठनीय आलेख

आज के अखबारों में जम्मू-कश्मीर और झारखंड के चुनाव परिणाम छाए हैं। मीडिया अभी तय नहीं कर पा रहीा है कि मोदी वेव थमी है या चल रही है। यह वेव कभी थी भी या नहीं। ज्यादातर लोग अपनी पूर्व निर्धारित धारणाओं के आधार पर फैसले कर रहे हैं। ज्यादातर निष्कर्ष कश्मीर को लेकर हैं। कश्मीर की राजनीति अचानक देश की सुर्खियों में है। इस राज्य में बीजेपी की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, पहले ऐसा सोचा न गया होगा। देखें आज की कुछ कतरनें
हिंदू में केशव का कार्टून
आज के कुछ पठनीय आलेख
No rabbit in his hat
Suhas Palshikar in Indian express

The distance between Jammu and Kashmir
Muzamil Jaleel in Indian Express

क्षेत्रीय दलों के बिखराव का नतीजा

प्रभात खबर, रांची

प्रभात खबर, रांची
‘राज्य’ से आगे निकलता ‘राष्ट्रीय’
प्रभात खबर, रांची

क्या नरेंद्र 'अटल' बनेंगे

अमर उजाला

अमर उजाला

Monday, December 22, 2014

कट्टरता का जवाब है वैचारिक समझदारी


आज के इंडियन एक्सप्रेस के दो आइटम ध्यान खींचने वाले हैं। अखबार के एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मोदी ने इस उम्मीद को कायम किया कि बहुत कुछ हो भी सकता है। उन्होंने मोदी के शौचालय कार्यक्रम की प्रशंसा की और यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में काम करके दिखा नहीं पाए। आज के एक्सप्रेस ने गोवा के एक कार्यक्रम से सुषमा स्वराज के एक वक्तव्य को उधृत किया है, जिसमें स्वराज ने उदारता और सहिष्णुता के रास्ते को उचित बताया है। हार्डकोर हिन्दुत्व से जुड़े बयानों के बीच सुषमा स्वराज का यह बयान आश्वस्तिकारक है। आज के एक्सप्रेस में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का लेख भी कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। एक्सप्रेस में पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुरशीद महमूद कसूरी का इंटरव्यू भी पढ़ने लायक है, जिसमें उन्होंने ट्रैक टू की बातचीत को उपयोगी बताया है। 


Tuesday, November 18, 2014

नेहरू के सहारे गैर-भाजपा एकता की कोशिश

 कांग्रेस पार्टी क्या जवाहर लाल नेहरू की 125 वीं जयंती के मौके पर गैर-भाजपा राजनीति का श्रीगणेश करना चाहती है? क्या देश का बिखरा विपक्ष वर्तमान हालात को देखते हुए उसके साथ आ जाएगा। बहरहाल नरेंद्र मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा की कवरेज ने कल दिल्ली में हुए समारोह को पीछे कर दिया। दिल्ली के कुछ अखबारों ने आज राहुल गांधी और प्रकाश करत की तस्वीरें छापी हैं। ममता बनर्जी भी इस समारोह में शामिल हुईं। आज के टेलीग्राफ ने इस बातो को खास महत्व दिया कि ममता ने कल आडवाणी जी और अरुण जेटली से मुलाकात भी की। अलबत्ता इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है Mamata Banerjee ready to be part of ‘secular front’ to fight communal forces; but won’t lead. गौर करें आज की कतरनों पर
हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
आज के हिंदुस्तान टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर सीताराम येचुरी का यह लेख भी पठनीय है
The Right-wing route is wrong
Sitaram Yechury
November 17, 2014
The current flavour of the month for the chatteratti is the 125th birth anniversary of the first Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru. For the media, ‘Breaking News’ is generating a debate on why the Congress has not invited Prime Minister Narendra Modi to its international seminar on Nehru’s worldview and legacy.

Friday, September 5, 2014

लोकतंत्र माने केवल बहुजनाधिपत्य नहीं

दिसम्बर 1992 में जिन दिनों अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब यह बात कही जा रही थी कि देश के बहुमत की आस्था का सवाल है तो इसमें आश्चर्य की बात क्या है। तभी थोड़े से लोगों ने यह भी कहा था कि लोकतंत्र केवल बहुमत की आवाज़ पर चलने वाली व्यवसथा नहीं है। सम्भव है केवल एक व्यक्ति की आवाज 99 आवाजों के मुकाबले ज्यादा समझदारी की हो। उसे सुनने और उसपर विचार करने वाली व्यवस्था का नाम लोकतंत्र है। लोकतंत्र के और भी तमाम मतलब हैं। मोटे तौर पर समझदारी, विज्ञान सम्मत, मानवीय और तार्किक व्यवस्था ही बेहतर लोकतंत्र की ओर ले जाती है। इस लोकतंत्र का विकास हो ही रहा है। हाल में स्वतंत्रता दिवस पर साप्ताहिक पत्रिका आउटलुक ने इस सवाल पर केंद्रित विशेषांक निकाला था, जिसमें सबा नकवी का मुख्य लेख था। दूसरे लेख भी इस बात को लेकर थे कि बहुसंख्यावाद का लोकतंत्र से क्या रिश्ता है।

पर बात केवल नम्बर तक सीमित नहीं हो सकती। सवाल है कि नम्बर नहीं तो क्या? लोकतंत्र के बरक्स तानाशाही है जो अल्पसंख्यावाद की सबसे बेहतरीन प्रतीक है। फिर अल्पसंख्यकों की परिभाषा करना बड़ा मुश्किल है। एक बात यह भी कही गई कि जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तभी बहुसंख्यक की तानाशाही पर नज़र क्यों पड़ी? यह विसंगति तो पहले से है। सन 1975 में तानाशाही फैसले करने वाली सरकार भी जबर्दस्त लोकतांत्रिक ज्वार के सहारे उभर कर आई थी। भारत में प्रायः मुसलमानों को मसले को अल्पसंख्यकों का मसला माना जाता है। पर योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि जहाँ मुसलमान एक बड़ी तादाद में रहते हैं झगड़े वहाँ होते हैं। इसका दूसरा मतलब यह भी निकलता है कि अल्पसंख्यक जब अपनी हित-रक्षा की बात सोचते हैं और उसके लिए जद्दो-जहद करते हैं तब टकराव होता है। खामोश रहें तो नहीं होता। सवाल यह भी है कि कौन हमें बताता है कि हमारा धर्म खतरे में है? और क्यों बताता है? धर्म की भूमिका हमारे जीवन में कितनी है? भारत में सेक्युलरिज्म की परिभाषा भी अस्पष्ट है।

आउटलुक के विशेषांक के बाद 5 सितम्बर के हिंदू में ज़ोया हसन का एक विचारोत्तेजक लेख प्रकाशित हुआ है। बेहतर हो कि इन लेखों को पढ़कर हम विचार करें कि हमारा लोकतंत्र कैसा हो। इन लेखों के लिंक नीचे दिए हैं। सामग्री पठनीय और विचारणीय है।

Numerocracy

Will the majoritarian project subvert the very democratic tradition that has brought the BJP to power?

SABA NAQVI

Some weeks ago, on a hot, humid evening, there was a book release in Delhi’s Constitution Club, a short walk from Parliament House where the Narendra Modi government was engaged in its first session. Union cabinet minister for micro, small and medium enterprises Kalraj Mishra had written Hindutva: Ek Jeevan Shaili (Hindutva: A Way of Life) in the twilight of his political career. At 73, Mishra—one of the old hands from Uttar Pradesh—is one of the more fortunate 70-plus leaders of the Bharatiya Janata Party to be accommodated in the Modi cabinet. But with 75 being the cut-off mark, he will probably last no more than two years. Good reason for the soft-spoken Mishra to be engaged in philosophical and ideological pursuits.

So there he was, flanked by the high priests of the mythical Hindu nation. Master of ceremonies was Yogi Adityanath, four-term BJP MP from Gorakhpur (and next in line to take over the influential Gorakhnath math) plus founder of the Hindu Yuva Vahini. All the speakers basically said that the inconve­nient word “secular” does not mean that Hin­dus have to be shy about their religion. Star speaker Baba Ramdev waxed eloquent: “People ask me, will Modi change anything? I believe he is the individual who will take India to a new direction.” What could that direction be? The yoga guru’s answer: “Maths, science, social system, ecosystem, agri­cultural system are all there in Hindutva. The Muslims of India have not come from Saudi Arabia, Iran or Iraq. They are from here, from Hindutva. The Christians have not come from Vatican city, they are from here, from Hindutva. Hinduism is the oldest religion, Islam and Christianity cannot match it, and we are all descendants of Hindus.”
A historical walkthrough of how majoritarianism has made appearances in idea and practice....


Politics without the minorities

ZOYA HASAN
We have two parallel narratives running simultaneously in the first 100 days of the Narendra Modi government. In the first one, as a heroic Prime Minister in total command of his government and party, Mr. Modi is busy revving up the sputtering economy with his decisive leadership and “good governance” much acclaimed by economists, the middle classes, the media, and the twitterati. After taking charge, Mr. Modi has been quick in framing rules and taking some strong decisions: from the announcement to scrap the Planning Commission to calling off Foreign Secretary-level talks with Pakistan to clearing 49 per cent foreign direct investment in insurance to launching the Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana with a promise to end “financial untouchability.”
The second narrative unfolding at the same time focusses on the template of majoritarianismdefined by the Sangh Parivar’s principal belief that India is a Hindu nation. The Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) chief, Mohan Bhagwat, declared that “India is a Hindu state and citizens of Hindustan should be known as Hindus.” Endorsing the RSS view, the Union Minister for Minority Affairs, Najma Heptulla, said, “there is nothing wrong in calling all Indians Hindus,” which she later denied. A similar statement was made by the Bharatiya Janata Party (BJP) MP Yogi Adityanath while opening the Lok Sabha debate on communal violence — “Hindutva is a symbol of Indian nationalism.” That this speech evoked table thumping from his fellow BJP MPs makes it even more significant.

Friday, August 29, 2014

क्या पाकिस्तानी समाज खूनी नसरीन को स्वीकार कर लेगा?

पाकिस्तान में अगले महीने से कॉमिक्स उपन्यास का एक ऐसा चरित्र सामने आने वाला है, जिसे लेकर अंदेशा है कि वहाँ के कट्टरपंथियों का तीखी प्रतिक्रिया होगी। यह पात्र है नसरीन का।  27 साल की नसरीन कॉलेज जाने वाली किसी आम लड़की है। वह कराची की रहने वाली है। कराची की हिंसा की कहानियाँ दूर-दूर तक फैसी है। ऐसा शहर जो जातीय हिंसा का शिकार है। जहां गरीब और कमजोर को इंसाफ नहीं मिलता और रोजाना दर्जनों खून होते हैं। नसरीन एक हाथ में तलवार रखती है तो दूसरे में पिस्तौल। निशाने पर होते हैं आतंकी, ड्रग माफिया और भ्रष्ट लोग। जिन्हें वह बेहद फुर्ती के साथ खत्म करती है।  हाल में दैनिक भास्कर ने नसरीन के बारे में एक समाचार कथा प्रकाशित की है। लाहौर के रहने वाले कलाकार शाहन जैदी ने बनाया है यह नसरीन का किरदार। यह इसी अक्टूबर में कॉमिक्स के रूप में बाजार में जाएगा। फिर टीवी और यूट्यूब पर सीरीज़। शाहन का कहना है कि कराची में जो कुछ हो रहा है उसमें कमजोरों को ताकतवरों से बचाने की कल्पना ही की जा सकती है। मैंने एक ऐसा कैरेक्टर तैयार किया है जो यह समझती है कि इज्जत की रोटी और इज्जत की जिंदगी पर गरीबों और कमजोरों का भी हक है।

लेकिन इस किरदार से मुल्क के कट्‌टरपंथी अभी से खफा हैं। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें होने लगी हैं। नसरीन चुस्त और टाइट लिबास जो पहनती है। सवाल उठाया जा रहा है कि वह दुपट्‌टा क्यों नहीं पहनती? उसके हाथ में सिगरेट है। वो मोटरसाइकिल चलाती है और उसने पियरसिंग भी करवाई है। यानी वह हर ऐसा काम करती है, जिसकी पाकिस्तानी मुस्लिम समाज में लड़कियों से उम्मीद नहीं की जाती। 

अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान में तालिबान ने औरतों की जिंदगी जिस तरह से मुश्किल बना दी है उसका नसरीन जैसा फिक्शनल कैरेक्टर ही जवाब है। शाहन कहते हैं हमें आनेवाली पाकिस्तानी नस्ल को महफूज बनाना है। जहां लड़कियां, लड़के, मर्द, औरतें एकसाथ खुश रह सकें। 

पाकिस्तान में इससे पहले पिछले साल बुर्का अवेंजर नाम से एक टीवी सीरियल भी चला जिसमें जिया नाम की एक साधारण सी लड़की बुर्का पहने सुपरहीरोइन बन जाती है और अपराधियों को सजा देती है। उसे तख्त कबड्डी नाम की मार्शल आर्ट में महारत हासिल है। टाइम मैगज़ीन ने बुर्का अवेंजर को सन 2013 के सबसे प्रभावशाली काल्पनिक चरित्रों में एक बताया था। 









Monday, August 18, 2014

सौहार्द की तस्वीरें भी हमारे बीच हैं

आज के इंडियन एक्सप्रेस के पेज 2 पर एक मुस्लिम महिला का चित्र है जो अपने बच्चे को कृष्ण बनाकर ले जा रही है। इस तरह की तस्वीरें हर साल भारतीय मीडिया में प्रकाशित होती रहती हैं। परम्परा से हमारे बीच जो सहिष्णुता है, उसे यों भी हम अपने शादी-विवाहों, पर्वों-त्योहारों और ग़मी-खुशी के तमाम मौकों पर देखते रहते हैं। मुझे याद पड़ता है सत्तर या अस्सी के दशक के शुरुआती वर्षों में लखनऊ में इंदिरा गांधी गोल्ड कप हॉकी प्रतियोगिता होती थी। यह अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता थी और इसमें पाकिस्तान की टीम भी खेलती थी। उन दिनों मैने देखा कि पाकिस्तानी खिलाड़ी हज़रतगंज में खरीदारी करते हुए अपने साथ कृष्ण की प्रतिमाएं खरीद कर ले जाते थे। आपको आश्चर्य होगा। भला वे अपने घर में बुत कैसे रखते होंगे? पर मुझे लगता है कि कृष्ण और राम को धार्मिक से ज्यादा सांस्कृतिक अर्थ में देखा जाना चाहिए।  इन दिनों बात चल रही है कि इस देश के रहने वालों को हिंदू कहने में क्या गलत है। गलत है या नहीं, पर दुनिया में तमाम जगहों पर हमें हिंदी या हिंदू कहा ही जाता है। हिंदू की धार्मिक पहचान शायद सौ-डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी नहीं है। जबके हमारी हिंदू या इंदु के रूप से पहचान हजारों साल पुरानी है। चीनी भाषा में भारत का नाम है इंदु वन और भारतीय को कहते हैं इंदु रन। आज क़मर वहीद नक़वी ने अपने फेसबुक वॉल पर एक तस्वीर लगाई है, जो 2011 के इंडियन एक्सप्रेस में छपी थी। मैने सन 2010 में अपने वॉल पर एक तस्वीर लगाई थी उसे भी इस पोस्ट के साथ लगा रहा हूँ। हो सकता है कि किसी एक मुस्लिम परिवार के दिमाग में बच्चे को कृष्ण बनाने की बात आई हो, पर अलग-अलग साल में अलग-अलग शहरों में ऐसा हो तो अच्छा लगता है।
आज के इंडियन एक्सप्रेस के पेज 2 पर लगी तस्वीर। नीचे इस तस्वीर को अलग से लगाया है। 

2011 की एक तस्वीर

2010 की तस्वीर




भास्कर में प्रकाशित

नीचे एक आलेख बृजेश शुक्ल का है। इसे पढ़ें। इसे मैने नवभारत टाइम्स के ब्लॉग से लिया है। लखनऊ की संस्कृति में इस सौहार्द के बेहतरीन उदाहरण मिलेंगे, जिन्हें लेखक ने गिनाया है। 


नवभारत टाइम्स | Aug 13, 2013, 01.00AM IST

बृजेश शुक्ल।।

पुराने लखनऊ में मेरे एक दोस्त रहते हैं। एक दिन अपना घर दिखाने लगे और मुस्कराकर बोले- यहां से वहां तक आपका ही घर है। लखनवी तहजीब, नफासत, नजाकत, इलमी अदब, वजादारी, मेहमानवाजी, हाजिर जवाबी में लखनऊ का दुनिया में कोई जोड़ नहीं। पिछले तीस सालों में लखनऊ कहां से कहां तक तरतीब और बेतरतीब ढंग से बढ़ा, उससे यह सवाल जरूर उठा कि लखनवियत अब बचेगी या नहीं। लेकिन टुकड़ों में ही सही, लखनवियत आज भी जिंदा है। विकास की अंधी दौड़ में समाज का बड़ा वर्ग 'पहले आप! पहले आप!' की तहजीब को भी नहीं समझ पाया। कुछ लोगों के लिए यह शब्द मजाक का विषय भी बना। लेकिन यकीन मानिए, 'पहले आप! पहले आप!' तो उसी महान संस्कृति के लोग कह सकते हैं, जिसमें कुर्बानी का जज्बा हो, जिसमें मेहमाननवाजी और दूसरों को तरजीह देने की कूवत हो। जो पहले खुद के लिए परेशान है, वह पहले आप बोल ही नहीं सकता।

नवाब आसफुद्दौला

लखनवियत लखनऊ के रस्मोरिवाज में घुली-मिली है। रमजान के दिनों में आप देर रात पुराने लखनऊ की गलियों में घूमिए। चाय की दुकानों में सामने रखे चाय के प्याले की ओर इशारा करते हुए यह कहने वाले आपको बहुत से लोग मिलेंगे- नहीं-नहीं, पहले आप लीजिए। लखनऊ में सन् 1722 में नवाबों का शासन आया और 1857 तक चला। लेकिन लखनवियत पनपी और बढ़ी 1775 से, यानी नवाब आसफुद्दौला के शासनकाल से। नवाब वाजिद अली शाह के समय में तो इस तरह फली-फूली कि लोग इस पर कुर्बान हो गए। वास्तव में लखनवियत तीन बुनियादी मूल्यों पर आधारित है। पहला इंसानियत, दूसरा हक यानी किसी जाति-धर्म का व्यक्ति हो, उसके साथ किसी तरह का भेदभाव न हो। तीसरा बिंदु है धर्मनिरपेक्षता- हर मजहब और मिल्लत की इज्जत करना और उसकी बेहतर चीजों को अपनाना। यहां बहुत से हिंदू एक दिन का रोजा रखते है। मोहर्रम के दिनों में तमाम हिंदू महिलाएं इमामबाडे़ व ताजिये के सामने जाकर मन्नतें मांगती हैं। जी हां, आज भी।

जोगिया मेला और इंदरसभा

'काजमैन रौजा' लाला जगन्नाथ ने बनवाया था। नवाब आसफुद्दौला के वजीर झाऊलाल ने ठाकुरगंज में इमामबाड़ा और टिकैतराय ने एक मस्जिद बनवाई। अमीनाबाद में पंडिताइन की मस्जिद मशहूर है। अलीगंज के हनुमान मंदिर के शिखर पर चमकने वाला इस्लामी चिन्ह चांद-तारा लखनवियत का प्रतीक है। इस मंदिर की संगेबुनियाद नवाब शुजाउद्दौला की बेगम और नवाब आसफुद्दौला की वालिदा बहूबेगम ने रखी थी। इस आपसी भाईचारे के कारण ही लखनऊ में अमन-चैन रहा। एक बार नवाब आसफुद्दौला का पड़ाव अयोध्या में पड़ा। नवाब साहब को जब तोपों की सलामी दी जा रही थी तभी उनके कानों में घंटा-घड़ियाल की आवाजें पड़ी। नवाब ने हुक्म दिया कि उनका पड़ाव इस पवित्र नगरी से पांच मील दूर डाला जाए, ताकि हिंदुओं को पूजा-पाठ में कोई व्यवधान न पैदा हो। नवाब वाजिद अली शाह हर साल जोगिया मेला लगवाते थे। उन्होंने राधा-कन्हैया और इंदरसभा नाटक लिखे और स्वयं श्रीकृष्ण की भूमिका करते थे।

तबला, खयाल, ठुमरी, सितार की परवरिश लखनऊ में हुई। कथक ने यही जन्म लिया। आदाब लखनवियत का हिस्सा है। जरा नवाबों की सोच तो देखिए। हिंदू नमस्ते कहे, मुसलमान सलाम करे तो एकता के दर्शन कहां। नवाबों ने दोनों वर्गो के लिए आदाब दिया। नजरें और सर थोड़ा झुका हुआ। उंगलियां आगे की ओर झुकी हुईं और हाथ को नीचे से थोड़ा ऊपर ले जाकर धीरे से आदाब कहना। इस लखनवियत में अहंकार नहीं है, संपन्नता का गरूर नहीं है। इस तहजीब की सबसे बड़ी खासियत यही है कि जुबान और व्यवहार से किसी को कष्ट न पहुंचे। कोई बीमार है तो यह नहीं पूछा जायेगा कि सुना आप बीमार है। पूछने वाला यही कह कर बीमार का हाल जान लेगा कि सुना है हुजूर के दुश्मनों की तबीयत नासाज है। लखनवी जुबान उर्दू है। लेकिन बहुत रस में पकी हुई, शहद में डूबी हुई। मुगलिया सल्तनत की जुबान फारसी थी। लेकिन उर्दू दक्षिण में पैदा हुई, दिल्ली में जवान हुई, लखनऊ में दुल्हन बनी और शबाब पाया।

वक्त बदल गया है। दीवारों से लखौरी ईटें गायब हो रही है। इमारतों का आर्किटेक्चर बदल रहा है। लेकिन पुराने लखनऊ की गलियों में आज भी लखनवियत नजर आती है। काजमैन के पास किसी बात को लेकर दो गुटों में तनाव हो गया। पत्रकार पहुंचे तो उन्होंने जानकारी चाही। वहां खड़े एक युवक ने बड़े मीठे लहजे में बताया- जनाब उधर शिया हजरात रहते हैं, इधर अहले सुन्नत हजरात रहते हैं। पत्रकारों ने समझा कि कोई मुस्लिम युवक है, इसी से बात कर ली जाए। नाम पूछा तो पता चला कि वह हिंदू था। लखनऊ की नजाकत, नफासत और मीठी जबान धर्म के आधार पर नहीं बंटी। यह तो एक तहजीब है। लखनऊ की हवाओं में लखनवियत है। गालियों से लेकर मोहब्बत व छेड़खानी तक का अपना अंदाज है। इस तहजीब को जीवन में उतार चुके लोगों की लड़ाइयों का भी तर्जे बयां निराला है- 'अब आप एक लफ्ज भी न बोलिएगा, बाखुदा आपकी शान में गुस्ताखी कर दूंगा।' जवाब आएगा- 'चलो मैं नहीं बोलता अब आप फरमाइए।'

दुनिया में लाजवाब है तू

अब जीवन तेज गति से चल रहा है। किसी के पास समय नहीं बचा। शब्दों में हाय-हलो हावी हो गया है। लेकिन लखनऊ के मामलों पर गहरी जानकारी रखने वाले जाफर अब्दुल्ला कहते हैं- लखनवी जुबान तो हवा का वो झोंका है जो जीवन में रंग भर देता है। दुनिया के किसी भी कोने में यदि आपको अपनी बेगम को ही आप कहने वाले कोई साहब मिल जाएं तो उनसे जरूर पूछिएगा, जनाब क्या आप लखनऊ के हैं? लखनऊ के ही प्रसिद्ध लेखक और इतिहासविद् योगेश प्रवीन की ये लाइनें लखनवियत को बताने के लिए काफी हैं- ये सच है जिंदादिली की कोई किताब है तू। अदब का हुस्नो-हुनर का हसीं शबाब है तू। सरे चमन तेरा जलवा है वो गुलाब है तू। लखनऊ आज भी दुनिया में लाजवाब है तू।

Friday, August 8, 2014

पानी में फँसा नौजवान, नीतीश कुमार और टाटा

बारिश कम हो तो परेशानी और ज्यादा हो तो और ज्यादा परेशानी। आज के भास्कर के पहले सफे पर एक पिलर के सहारे लटके एक युवक की तस्वीर है, जो तेज बहते पानी के बीच फँसा है। इन दिनों ऐसे दृश्य देश भर से देखने को मिल रहे हैं। मोबाइल फोनों में लगे कैमरों ने अब ऐसी खबरें लेना आसान बना दिया है। राजस्थान पत्रिका ने जयपुर के महिला कॉलेजों में चल रहे छात्रसंघ चुनाव में सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका पर रोचक फीचर छापा है। ऐसी ही कुछ और तस्वीरें दूसरे अखबारों में हैं। एक रोचक खबर बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्र और रतन टाटा के बीच शाब्दिक जिरह को लेकर है। रतन टाटा ने एक रोज पहले कहा था कि मैं दो साल बाद कोलकाता आया हूँ और मुझे राजरहाट इलाके में औद्योगिक विकास नजर नहीं आया। इस पर अमित मित्र ने कहा कि टाटा का दिमाग फिर गया है। सिंगुर मामले के कारण नैनो परियोजना को बंगाल से गुजरात ले जाने वाले टाटा के मन में खलिश है। मित्रा-टाटा संवाद पर आज के टेलीग्राफ ने जोरदार कवरेज की है। आज की एक रोचक खबर बिहार से है जहाँ के मुख्यमंत्री जीतन राम माँझी ने कहा है कि चुनाव के बाद हम जीते तो मुख्यमंत्री  नीतीश कुमार बनेंगे। जेडीयू, राजद और कांग्रेस के गठबंधन ने बिहार में गठबंधन की योजना बना ली है। चुनाव अभी दूर है। आज की कुछ कतरनें



Friday, August 1, 2014

सोनिया, त्याग की प्रतिमूर्ति या बात कुछ और थी

श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा है कि अब मैं किताब लिखकर स्थिति साफ करूँगी। 18 मई 2004 की रात में देर तक चले नाटकीय घटनाक्रम के बाद 19 मई की सुबह के अखबारों ने श्रीमती गांधी को त्याग की प्रतिमूर्ति करार दिया। 18 मई को संसद भवन के केंद्रीय हॉल में उन्होंने कांग्रेस संसदीय दल के सामने कहा, "Today my inner voice is telling me that I should politely refuse to accept the post of Prime Minister.” भारतीय समाज त्याग का सम्मान करता है। सत्ता के परित्याग से बड़ी बात क्या हो सकती है? पर अब सोनिया जी के कभी करीबी रहे नटवर सिंह ने इस त्याग की मूल अवधारणा पर सवालिया निशान लगाया है। सोनिया जी नटवर सिंह की बात को किस तरह गलत साबित करेंगी? या नटवर सिंह अपनी बात को कैसे साबित करेंगे? 

इस एक घटना के कारण कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक इतिहास में सोनिया गांधी की तुलना महात्मा गांधी से की गई है। इस इतिहास से जुड़ी एक रपट के अंश इस प्रकार हैं

कांग्रेस ने अपने 125 वर्षों का इतिहास लिखते हुए वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी की तुलना महात्मा गांधी से की है.  हाल ही में कांग्रेस से सवा सौ साल पूरे होने पर जारी किताब 'कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ़ द इंडियन नेशन' में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का पद स्वीकार न करने का त्याग महात्मा गांधी के त्याग की तरह से याद किया जाता है. इस किताब में कांग्रेस में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या को महात्मा गांधी की तरह ही देश के लिए बलिदान बताया गया है. कांग्रेस का कहना है कि इस किताब को कई इतिहासकारों ने मिलकर तैयार किया है और इसे पार्टी की सहमति से प्रकाशित किया गया है. इसके मुख्य संपादक प्रणब मुखर्जी हैं और संयोजक आनंद शर्मा हैं.
 त्याग की तुलनादो खंडों में प्रकाशित इस किताब के पहले खंड के पृष्ठ 156 पर 'सोनिया गांधी का यादगार त्याग' शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित सामग्री में प्रधानमंत्री पद स्वीकार न करने के सोनिया गांधी के फ़ैसले का ज़िक्र किया गया है. इसमें 18 मई, 2004 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी के संबोधन का ज़िक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री बनना कभी उनका लक्ष्य नहीं रहा, उन्हें सत्ता ने कभी आकर्षित नहीं किया और कोई पद पाना कभी उनका लक्ष्य नहीं रहा. उल्लेखनीय है कि 15 मई को सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया था और अगले दिन यानी 16 मई को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए ने भी उन्हें नेता चुना और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी. बीबीसी हिंदी में पूरी रपट पढ़ें

इस साल 3 जनवरी को मनमोहन सिंह ने अपने आखिरी संवादाता सम्मेलन में कहा था, मेरे कार्यकाल के बारे में इतिहासकार फ़ैसला करेंगे। उन्होंने कहा मीडिया या संसद में विपक्ष की अपेक्षा इतिहास मेरे प्रति ज्यादा उदार रहेगा। ...राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए मैने सर्वश्रेष्ठ किया है। मैं नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं ….इतिहास मेरे प्रति उदार रहेगा …. राजनीतिक बाध्यताओं को देखते हुए मैंने बेहतरीन किया है जो मैं कर सकता था।…मैंने किया है और साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार मैं जो कर सकता था …यह इतिहास तय करेगा कि मैंने क्या किया और मैंने क्या नहीं किया। 
इसके कुछ महीने बाद संजय बारू की किताब में मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने वाले कुछ हालात का विवरण दिया गया। और अब सोनिया जी के करीबी राजनेता ने जो जानकारी दी है, वह इतिहास में दर्ज हो गई है। सवाल है कि क्या यह राजनीतिक प्रतिशोध है या एक सहज सूचना। क्या सोनिया गांधी इससे बेहतर कोई जानकारी देने की स्थिति में हैं? 

राजनेताओं के संस्मरण देश के हालात और राजनीतिक व्यवस्था को समझने में मददगार होते हैं। मनमोहन सिंह ने जिसे इतिहास कहा, वह भी इसी प्रकार लिखा जाएगा। बेहतर हो कि इसपर जल्द से जल्द रोशनी डाली जाए। बहरहाल 19 मई की सुबह भारतीय अखबारों की कवरेज का जो विवरण बीबीसी ने दिया था, उसे पढ़ना भी रोचक होगा। नीचे पढें उस रपट के अंशः-
Newspapers across India have lauded Congress party leader Sonia Gandhi's decision not to accept the position of the prime minister.The general view is that the move is in the Indian tradition of renunciation and that she has emerged with more stature.

Newspapers also attack the campaign of the defeated Hindu nationalist Bharatiya Janata Party (BJP) against Mrs Gandhi's foreign origins, one of the reasons thought to be behind her decision to opt out.

Most of the newspapers gave the thumbs up to Mrs Gandhi for deciding not to accept the position of the prime minister.

Amazing Grace was the headline verdict of the Hindustan Times.
The Asian Age chimed in with Sonia Switch Turns Off Power, Turns on Hearts.
Renouncing power, going for glory, was the opinion voiced in a front-page story in the Times of India.

'Standing tall'Most newspapers said Mrs Gandhi's decision was in the "true Indian tradition" of renunciation.
Read full BBC report here  







Monday, July 21, 2014

किस तरह एक भ्रष्ट जज अपने पद पर बना रहा!

सीएनएन-आईबीएन में जस्टिस काटजू
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'एक्‍सीडेंटल पीएम' के कुछ अंशों की वजह से हंगामा शुरू हो गया था। संजय बारू ने लिखा कि मनमोहन सिंह अपनी मर्जी से फैसले नहीं कर पाते थे। यह हंगामा शांत होने के पहले ही पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख की किताब 'क्रूजेडर आर कांस्पिरेटर: कोलगेट एंड अदर ट्रूथ' ने दूसरा हंगामा खड़ा किया। इस किताब में पारख ने बताने की कोशिश की है कि कैसे कोयला मंत्रालय के कामकाज को प्रधानमंत्री असहाय प्रधानमंत्री की तरह देखते थे। वह कड़े फैसले लेने में कमजोर थे और साथ ही कोयला मंत्रालय में जारी ब्‍लैकमेलिंग का जिक्र भी पारख ने अपनी किताब में किया। पारख ने अपनी इस किताब में दावा किया है कि अक्‍सर नेता कई बड़े फैसलों को बदलने और उन्‍हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। और अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मद्रास हाइकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि गठबंधन राजनीति के कारण उस जज को लगातार संरक्षण मिलता रहा, बावजूद इसके कि उसपर भ्रष्टाचार के आरोप थे। आज सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया ने जस्टिस काटजू के आलेख को अपनी लीड बनाया है। उन्होंने अपने आलेख में लिखा है कि मेरा उद्देश्य यह बताना है कि सिस्टम किस तरह काम करता है, I have related all this to show how the system actually works, whatever it is in theory. In fact, in view of the adverse IB report the judge should not even have been allowed to continue as additional judge. न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। जस्टिस काटजू अपने ब्लॉग में इन दिनों मद्रास हाइकोर्ट के अनुभवों को लिख रहे हैं। उनके इस आलेख ने भारतीय राजनीति के भीतर के एक गहरे अंतर्विरोध को उभारा है। हमारे यहाँ न्यायाधीशों ने अपने इस किस्म के संस्मरण नहीं लिखे हैं। यह आलेख मौके पर सामने आया है। जस्टिस काटजू ने अपने लेख की शुरूआत इस तरह की हैः-

There was an additional judge of the Madras high court against whom there were several allegations of corruption. He had been directly appointed as a district judge in Tamil Nadu, and during his career as district judge there were as many as eight adverse entries against him recorded by various portfolio judges of the Madras high court. But one acting chief justice of Madras high court by a single stroke of his pen deleted all those adverse entries, and consequently he became an additional judge of the high court, and he was in that post when I came as chief justice of Madras high court in November 2004.
That judge had the solid support of a very important political leader of Tamil Nadu. I was told that this was because while a district judge he had granted bail to that political leader.
Since I was getting many reports about his corruption, I requested the Chief Justice of India, Justice RC Lahoti, to get a secret IB inquiry made about him. A few weeks thereafter, while I was in Chennai, I received a call from the secretary of the CJI saying that Justice Lahoti wanted to talk to me. The CJI then came on the line and said that what I had complained about had been found true. Evidently the IB had found enough material about the judge's corruption.

टाइम्स ऑफ इंडिया में पढ़ें पूरा आलेख 

जस्टिस काटजू के ब्लॉग को पढ़ें

Monday, July 7, 2014

क्या देश का रूपांतरण कर पाएगी मोदी सरकार?

इस बारे में कभी दो राय नहीं थी कि देश के भीतर काले धन की जबर्दस्त समांतर व्यवस्था काम करती है और लगभग 70 फीसदी कारोबार हिसाब-किताब के बाहर होता है। आज अमर उजाला ने एक सरकारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए एमके वेणु की खबर छापी है। पिछले कुछ वर्षों में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को लेकर जो चर्चा शुरू हुई है उसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। चूंकि काले धन का रिश्ता अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से रहा है इसलिए दुनिया का ध्यान इस ओर गया है। इस चक्कर में भारतीय काले धन का जिक्र भी हुआ है। सच यह है कि भारतीय राज-व्यवस्था बेहद कमजोर है। देश के भीतर के सारे कारोबार को राज-व्यवस्था की निगहबानी में लाया जा सके तो राजकोषीय समस्याओं के समाधान संभव हैं। ध्यान दें कि हमारी राजनीति सामंती ढाँचे में रची-बसी है। वह बड़े स्तर के कर सुधार और व्यवस्थागत बदलाव होने से रोकेगी। इस प्रकार वह अपने न्यस्त स्वार्थों की रक्षा करने में सफल है। आज के अखबारों में बजट सत्र को लेकर खबरें हैं। इस सत्र में स्पष्ट होगा कि मोदी सरकार किस हद तक देश के रूपांतरण में बड़ी भूमिका निभाने वाली है। आज की कुछ खास कतरनों पर नजर डालें

विदेश से ज्यादा देश में कालाधन
एमके वेणु
सोमवार, 7 जुलाई 2014
आम चुनाव के दौरान भले ही विदेश में कालाधन का मुद्दा गरमाया हो मगर देश में मौजूद कालेधन की हकीकत मोदी सरकार को अंदरखाने हिलाने के लिए काफी है।

कालेधन पर सरकार की 1000 पेज की सनसनीखेज रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल अर्थव्यवस्था (जीडीपी) का करीब 71 फीसदी तक कालाधन है। इसके हिसाब से करीब 2000 अरब डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर 1400 अरब डॉलर का कालेधन का कारोबार है।

इन आंकड़ों को अगर रुपये में देखें तो 120 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था के समानांतर 83 लाख करोड़ रुपये का कालेधन का कारोबार है। पूरी खबर पढ़ें यहाँ


Sunday, July 6, 2014

नरेंद्र मोदी के बारे में गिरीश कर्नाड की ताज़ा राय

गिरीश कर्नाड ने कहा है कि नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं, और इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुई हिंसा के बारे में मैं अपनी राय व्यक्त कर चुका हूँ। पर उसके बाद से वहाँ ऐसी कोई घटना नहीं हुई जो उन्हें बदनाम करे। ...आलोचना के बावजूद देश ने मोदी को जिताया। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है। जनता की कांग्रेस के शासन को लेकर नाराजगी थी और मोदी की जीत के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। कर्नाटक के धारवाड़ में हुए एक समारोह के दौरान उन्होंने बातचीत में उन्होंने आशा व्यक्त की कि मोदी जनता की उम्मीदों को पूरा करेंगे। कर्नाड की इस बात का मतलब जो भी हो, कन्नड़ लेखक यूआर अनंतमूर्ति ने कहा कि मैं कर्नाड की राय से सहमत नहीं। यह खबर आज के टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदू में छपी है। दोनों में खबर लिखने का ढंग कुछ फर्क है। मोटी बात है कि कर्नाड ने मोदी की उस कड़वे ढंग से आलोचना नहीं की है, जिसकी कुछ लोग उनसे उम्मीद करते हैं। दूसरे उन्होंने लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सम्मान करने की सलाह दी है। मेरे विचार से यह संतुलित दृष्टिकोण है, पर जो लोग 'धारदार' नज़रिया रखते हैं या जिनकी पक्षधरता सीधे-सीधे राजनीतिक विचारधारा से जुड़ी है, उन्हें इस वक्तव्य के बारे में राय बनाने में असमंजस होगा। मुझे कर्नाड न तो मतलब परस्त लगते हैं और न भ्रमित। नीचे दोनों खबरें दी हैं। आप अपने निष्कर्ष निकालें
टाइम्स ऑफ इंडिया

One-time detractor Girish Karnad now hails PM Modi’s ‘good work’

One-time detractor Girish Karnad now hails PM Modi’s ‘good work’Karnad attributed Modi’s success to the people’s desire for change.
DHARWAD/BANGALORE: Playwright and director GirishKarnad on Saturday said Prime Minister NarendraModi is doing a good job and hoped he would fulfil the people's aspirations.
Speaking on the sidelines of a function here, the Jnanpith awardee said: "Narendra Modi is our Prime Minister, and we should accept it. I had expressed reservations about the post-Godhra carnage in Gujarat when Modi was chief minister. But after that, there have been no incidents to bring him a bad name. He has provided good governance."
Karnad attributed Modi's success to the people's desire for change. "The people's disappointment over the performance of the Congress government at the Centre contributed greatly to Modi's success," he noted.
The country gave Modi a mandate, criticism against him notwithstanding. "People's thinking across the nation was alike. That's the beauty of democracy."
On the performance of the Congress government in Karnataka, he said the people had elected the party to power and he respects their verdict. He refused to comment on the Siddaramaiah ministry's performance.
Karnad's remarks are a far cry from his stance in the run-up to the Lok Sabha elections this year when he, along with writer UR Ananthamurthy, spoke out strongly against Modi.

हिंदू

Not correct to oppose Modi now: Karnad

DHARWAD, July 6, 2014
Jnanpith Award winner Girish Karnad said here on Saturday that it was not correct to oppose Prime Minister Narendra Modi as he had been democratically elected by the people of the country.
Replying to questions from presspersons about his stand on Mr. Modi whom he had opposed during the elections, Mr. Karnad said he had opposed Mr. Modi, who was the Bharatiya Janata Party’s prime ministerial candidate, and also campaigned for the Congress candidate from the Bangalore South Parliamentary constituency, Nandan Nilekani, during the elections. But now, Mr. Modi was the head of the government.
People’s verdict
“As citizens we have to respect the people’s verdict and give due respect to our elected Prime Minister. We are living in a democratic system, and I cannot say I will not accept him as Prime Minister,” Mr. Karnad said.
He added that it would be too early to say anything about the style of functioning of the Modi government. “Let us give him time,” he said.

यह खबर मुझे कन्नड़ प्रभा अखबार में नहीं दिखाई दी। विजय कर्नाटक में मिली, जो ईपेपर में थी। उसे मैं पढ़ नहीं पाता हूँ। वैबसाइट पर नहीं मिली जहाँ मैं उसका ऑटो अंग्रेजी अनुवाद पढ़ सकता है। चूंकि यह टाइम्स समूह का अखबार है इसलिए संभव है यह खबर भी टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी हो।


Sunday, June 8, 2014

कैसे थामेगी महंगाई के तूफान को सरकार?

संसद के चालू सत्र में सरकार के सामने मुश्किलें नहीं है, पर कुछ समय बाद ही उसके सामने महंगाई को नाथने की जिम्मेदारी आएगी। इस साल मॉनसून देर से आया है और उसके कमज़ोर होने का खतरा भी है। सरकार किस तरह महंगाई का सामना करेगी? आज के अखबारों में कैबिनेट सचिव की बैठकों का जिक्र है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक झंझावात से गुजर रही है। उसके भीतर संकटं का सामना करने की कितनी सामर्थ्य है यह भी दिखाई पड़ रहा है। पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन का विवकण भी आज की सुर्खियों में है। आज के भास्कर ने विवेकानंद फाउंडेशन पर अच्छी रिपोर्ट दी है। वहीं टेलीग्राफ ने भारत-चीन रिश्तों में तिब्बत की प्रवासी सरकार की कसक पर अच्छी रपट दी है। हिंदू की वैबसाइट पर चंद्रबाबू नायडू का इंटरव्यू पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने कहा है कि आंध्र की राजधानी विजयवाड़ा-गुंटूर के बीच कहीं बनेगी। यह दुनिया का सबसे अच्छा नियोजित नगर होगा और यह चेन्नई और हैदराबाद के साथ बुलेट ट्रेन से जुड़ेगा। दिल्ली में मोदी सरकार भी बुलेट ट्रेन को आने वाले समय का प्रतीक बनाकर चल रही है। 








We have to build from scrtach : Naidu


I have to fight for funds for Capital, special status’
“We will have our capital on the Vijayawada-Guntur stretch that will be the world’s best planned city, fully loaded with ultra modern facilities. I have even plans for introducing a bullet train to Chennai and Hyderabad.”
That is “hi-tech” N. Chandrababu Naidu, sharing his vision for the new capital of Andhra Pradesh, exclusively with The Hindu on the eve of his swearing-in as the first Chief Minister of a State which he insists “has to start from scratch.”
“Nothing is impossible if you have a clear vision of how you want your city to be. I have done it in Hyderabad and I will do it here. It will be much more than Singapore. It will be a hub of economic activities and a most favoured destination for investments, having the best connectivity. There will be no dearth of avenues for entertainment and social life,” he said.
Brimming with confidence, Mr. Naidu was unstoppable during a chat with this correspondent in his bullet- proof SUV as he travelled from Raj Bhavan to his home on Friday. “Having gained experience from the Hyderabad example, we will opt for dispersed development, transforming the upcoming capital region, Visakhapatnam and Tirupati into three mega cities and turn major corporations into hubs of investments giving a choice to investors. That is why I have invited top industrialists across the country for my swearing-in.”
पूरी खबर पढ़ें यहाँ