tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post7971202110470712814..comments2024-03-19T11:38:51.284+05:30Comments on जिज्ञासा: बदलाव के दो दशकPramod Joshihttp://www.blogger.com/profile/01032625006857457609noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-6084014574523164282011-06-29T10:58:06.850+05:302011-06-29T10:58:06.850+05:30प्रमोद जी, मुझे लगता है कि अक्सर जिसे हम भारी कठिन...प्रमोद जी, मुझे लगता है कि अक्सर जिसे हम भारी कठिनाई का समय सोचते हैं, उसी में नये निर्णय लिये जाते हैं जिनसे भविष्य की दिशाएँ बदल जाती हैं, और जिन्हें खुशहाली के दिन मानते हैं, उनमें कुछ नया नहीं कर पाते या फ़िर आने वाले बुरे दिनों की नीवें रखते हैं, और यह चक्र चलता रहता है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-1801333369933287882011-06-28T15:10:17.066+05:302011-06-28T15:10:17.066+05:30अच्छा लेख ...अच्छा लेख ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-62021693426732196342011-06-27T10:25:28.688+05:302011-06-27T10:25:28.688+05:30विवेचन के साथ आपका प्रश्न की आर्थिक विकास का न्याय...विवेचन के साथ आपका प्रश्न की आर्थिक विकास का न्यायोचित और समान वितरण क्यों नहीं है?यही तो सभी समस्याओं की जद है,इसी का समाधान उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज के नियंत्रण से हो सकता है-चाहे सर्कार द्वारा हो या चाहे सहकारिता के माध्यम से.vijai Rajbali Mathurhttps://www.blogger.com/profile/01335627132462519429noreply@blogger.com