tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post5283032448894529797..comments2024-03-19T11:38:51.284+05:30Comments on जिज्ञासा: एक अखबार जो साखदार है और आर्थिक रूप से सबल भीPramod Joshihttp://www.blogger.com/profile/01032625006857457609noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-63822677937985365452011-10-19T18:13:22.373+05:302011-10-19T18:13:22.373+05:30सही है ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
मेरी बधाई स्वी...सही है ||<br /><br />बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||<br />मेरी बधाई स्वीकार करें ||रविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9736359.post-1380234436221650082011-10-19T15:49:55.844+05:302011-10-19T15:49:55.844+05:30ये सही है. पर आज जितने भी अखबार प्रकाशित हो रहे है...ये सही है. पर आज जितने भी अखबार प्रकाशित हो रहे हैं वे उस राज्य में जिस पार्टी का शासन है उसकी जी-हजूरी में लगा हुआ है. इसका एक कारण अखबार को विज्ञापन नहीं मिलने का भय है. इसके अलावा उन व्यावसायियों से भी उस अखबार का मालिक संबंध बना कर रखता है, जिससे समय-बेसमय विज्ञापन एवं रूपयों की उगाही कर सके. ऐसे में वहां कार्यरत पत्रकार के पास समाचार लिखने के लिए अवसरों की कमी बनी रहती है. वह तभी किसी विभाग या उद्योग के खिलाफ लिखता है, जब उसे आदेश मिलता है कि इससे विज्ञापन लेना है. दे नहीं रहा है. पत्रकार यह सोच कर किसी प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़ता है कि अब वह उन समस्याओं पर लिखेगा या दिखायेगा, जो सच है. पर वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाता और अपने परिवार की रोजी-रोटी बनी रहे सोच मन मार कर उन आम लोगों पर प्रहार करता रहता है, जिसे अपनी पीड़ा से फुर्सत नहीं होती. न जाने क्या परोसना चाह रहे हैं आज के अखबार. बस मारपीट, खून, हत्या, बलात्कार और फूल-फूल पेज के विज्ञापनों से उनके पृष्ठ रंगे रहते हैं.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13331821594533334862noreply@blogger.com